मेरी आवारगी

बेटी के नाम 11वीं पाती : तुम्हारे साथ जिया वक्त ही इस समय का असल हासिल है।



बेटी के नाम 11वीं पाती : तुम्हारे साथ जिया वक्त ही इस समय का असल हासिल है।

प्रिय मुनिया,
मेरी लाडो, मैं तुम्हें यह पत्र तब लिख रहा हूं, जब हमने हाल ही में अपनी पहली सुखद हवाई यात्रा सम्पन्न की है। इसलिए यह पत्र तुम्हारी पहली हवाई यात्रा के नाम ही समझो। तुम्हें पिछला पत्र मैंने करीब माह भर पहले 17 जून की रात को लिखा था।ऐसा नहीं है कि हवाई यात्रा करके हमने कुछ खास या अलग कर दिया है, जिसे दर्ज किया जाना है। दरअसल तुम्हारे साथ ये चार दिन कितने सुखद रहे हैं, मेरे लिए यह शब्दों में बता पाना संभव नहीं है। यह पहली बार था, जब पूरे 96 घंटे हम दोनों ने एक साथ बिताए। हालांकि ये बात और है कि इस पूरी यात्रा के दौरान हम दोनों ने तुम्हारी मां को बहुत याद किया। हमें उनकी कमी बहुत खली।

मेरी बच्ची, ये चार रोज मेरे लिए किसी वरदान से कम नहीं थे, जब हम दोनों ने खूब सारी बातें कीं और साथ समय बिताया। मेरी बच्ची, तुम्हारी मां यूं तो दफ्तर के कामकाज के लिए महीने में चार बार हवाई यात्रा का लुत्फ उठाती ही रहती हैं, लेकिन तुम्हारे साथ पहली हवाई यात्रा का सौभाग्य मुझे ही प्राप्त हुआ है। मैं इसे सौभाग्य इस मायने में मान रहा हूं कि इस नन्हीं सी उम्र में प्लेन में बैठने से लेकर उसकी यात्रा करने तक के तुम्हारे सारे हाव-भाव मैं अपनी स्मृतियों के संसार में दर्ज कर सका हूं।

प्रिय मुनिया,

मेरी लाडो, मैं तुम्हें यह बताना चाहता हूं कि तुम्हारे साथ बीता हर लम्हा जीवन का सबसे सुखद पल है। ऐसे में यदि लगभग चार रोज तुम्हारे साथ बिताने का अवसर मिले तो यह अपने आप में एक सुखद संयोग है। 9 और 12 जुलाई को जबलपुर से बैंगलोर और बैंगलोर से जबलपुर की यह हवाई यात्रा हमने अपने (तुम्हारी मां और मेरे ) गुरुद्वारे में मत्था टेकने के लिए की थी। यदि तुम्हारी मां भी हमारे साथ होतीं, तो यह यात्रा "सोने पर सुहागा" हो जाती। लेकिन दफ्तर के कामकाज ने उन्हें साथ ना जाने के लिए बाध्य कर दिया। हालांकि यात्रा तुम्हारी मां की ओर से ही स्पॉन्सर्ड थी। इसलिए हमें तुम्हारी मां को धन्यवाद देना चाहिए।

मेरी लाडो, 10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हम मैसूर जाने के लिए हमने 9 तारीख को पहली उड़ान भरी और देर रात 11 बजे मैसूर पहुंचे थे। पहले ट्रेन से जबलपुर फिर हवाई जहाज और फिर बस से मैसूर तक का सफर तय किया गया। जबलपुर से बैंगलोर के लिए उड़ान भरते वक्त तुम्हारा चेहरा देखने लायक था। "ये ऊपल, ऊपल और ऊपल जाओ। पापा मुझे बहुत मजा आ लहा है, हम हवा में उल लहे हैं"। तुम जोर जोर से यही चिल्ला रही थी। मुझे ये अंदाजा नहीं था कि तुम उड़ान भरते वक्त इतनी सहज प्रतिक्रिया दोगी। लगा था कि तुम्हें प्लेन टेक ऑफ और लैंडिंग के समय डर लगेगा। इसलिए तुम्हें पकड़कर बैठना पड़ेगा, लेकिन तुमने इसके विपरीत जाते हुए इसका भरपूर लुत्फ उठाया।

प्रिय मुनिया,
मेरी लाडो, तुमने जितनी सहजता से हवाई यात्रा को इस नन्हीं उम्र में अंजाम दिया है। उसे देखकर तो किसी सहयात्री के मन में भी यह खयाल नहीं आया होगा कि ये तुम्हारी पहली हवाई यात्रा है। शायद इसीलिए बैंगलोर एयरपोर्ट पर फ्लाइट के लैंड करते ही हमारे सहयात्री ने कहा था कि "आपकी बेटी प्लेन से आती जाती रहती होगी, तभी तो इतना यूज टू हो गई है। मेरा 5 साल का बेटा तो पहली बार प्लाइट टेक ऑफ होते ही आँखें बंद करके मुझसे चिपट जाता है।" अब भला उसे कौन समझाए कि तुम इस समय "आफत की पुड़िया" बन गई हो। घर में तुम्हें बहुत संभालना और देखना पड़ता है अन्यथा "नज़र हटी और दुर्घटना घटी"। एक दिन तुमने पूरी क्रीम खुद पर उड़ेल ली, कभी वाशिंग पाउडर मशीन पर उड़ेलकर अपने इधर उधर बिखरे सारे कपड़े उस पर डाल दिए, तो कभी किचन की चीनी, हींग और गुड जो भी मिला सब मिलाकर पोंछा मार दिया। तुम्हारी ये सब बदमाशियां बीते सप्ताह की ही हैं। मेरी जान बदमाशियों का पूरा का पूरा जखीरा तुम्हारे अंदर कैद है। जब भी तुम्हारी मर्जी होती है कोई एक बदमाशी उसमें से चुन लेती हो। बहरहाल मैं हमारी यात्रा पर लौटता हूं।

मेरी लाडो, विंडो से आसमान को देखते हुए तुम्हें बादल में पानी भरे होने का खयाल आया, तपाक से तुमने अपनी तोतली जबान से शहद घोलते हुए कहा था "पापा ये बादल है इससे बालिश होती है ना, इसमें पानी भला लहता है ना।" आसपास के सहयात्री तुम्हारी प्यारी प्यारी बातें सुनकर मंद मंद मुस्करा रहे थे। संभवतः वे यही सोच रहे होंगे कि ये बच्ची जब यहां पर इतना उत्पात मचा रही है, तो घर पर क्या करती होगी। तुमने दो घंटे पंद्रह मिनट की फ्लाइट में ना ही मुझे झपकी लेने दी और ना ही खुद ली। जैसे ही आंख बंद होती थी, तुमने पुरजोर विरोध दर्ज करते हुए कहा, पापा ये सोने की जगह नहीं है, इसमें सिर्फ बैठते हैं ना। वहीं स्नैक्स और ब्रिवरेज सर्व करते हुए हर एयरहोस्ट्रेस के तुम्हें नाम अलग जानने होते थे। सीट पर रखे सारे फ्लाइट लिट्रेचर और मैगजीन तुम्हें पढ़ने होते थे। कुल जमा तुमने तोते की तरह पटर-पटर इतनी बातें कीं कि सहयात्रियों को कहना पड़ा कि बहुत बातूनी बच्ची है।

प्रिय मुनिया,
मेरी जान, तुमने इस छोटी सी यात्रा में ही नहीं बल्कि मैसूर में भी स्वामी जी के आश्रम में जमकर बदमाशी की। समय अभाव में हम और कहीं तो नहीं जा सके, लेकिन "लोकरंजन एक्वा वर्ल्ड" में तुमने रंगबिरंगी, छोटी- बड़ी कई प्रकार की मछलियाँ देखकर खूब मौज की। इस दौरान कई बार सड़क चलते हुए तुम्हें जो भी खेल खिलौना दिखा सब चाहिए था। बड़ी मुश्किल से तुम्हें समझा सका था। क्योंकि जिद के मामले में तो तुम मेरी भी बाप हो। शायद तुम जानती हो कि जिद करने से हर मांग पूरी हो जाती है। शायद इसीलिए एक्वा वर्ल्ड में तुमने मछलियों को कई बार दाना खिलाने के बाद भी लगातार उन्हें दाना खिलाते रहने की जिद ही पकड़ ली थी। किसी कदर तुम्हारा ध्यान भटकाकर वहां से बाहर लाना पड़ा था। लेकिन उससे बाहर आते ही तुम्हें सामने वाले कैफे एरिया में नूडल्स की तस्वीर दिख गई। फिर क्या था हक्का नूडल्स ऑर्डर किया गया। हम दोनों ने उसे एक झटके से चट किया।

मेरी लाडो, तुमने पूरी यात्रा के दौरान यात्रियों को इस कदर परेशान कर दोगी। बड़ी मुश्किल से तुमने सीट बेल्ट बांधे और विंडो सीट से आसमान इस बीच में तुम्हारी खाने-पीने की फरमाइशों ने कई बार मेरा सर चकरा दिया था। बैंगलोर एयरपोर्ट पर उतरते ही तुमने पिज्जा की फरमाइश की थी और हमने साथ मिलकर उसका आनंद भी लिया। मुझे याद नहीं है कि बीते तीन साल में इतना सारा वक्त एक साथ कभी तुम्हारे साथ बिताया हो। इस यात्रा के बाद ये महसूस हुआ कि तुम्हें कम समय दे पाने का मलाल झूठा नहीं है। यूं तो अब स्कूल के चलते सुबहें भी तुमसे शुरू होती हैं। रात तो अक्सर ही हमारी आंखों में साथ- साथ ही नींद घोलकर जाती है।

मेरे लिए तुम्हारे साथ जिया वक्त ही इस समय का असल हासिल है और वहीं सबसे महत्वपूर्ण है। इसलिए तुम्हारे साथ बीते ये 96 घंटे मेरे लिए अब तक के सबसे सुनहरे पल हैं। मैंने इन्हें यादों के पिटारे में कैद करके स्मृति लोक में भेज दिया है। मैं भलीभांति जानता हूं कि अपनी संतान से इतनी आसक्ति होना दुखदाई है, लेकिन तुम्हारे साथ जिया हर पल अपने बचपन को जी लेना है। फिलवक्त मैं इससे महरूम नहीं रहना चहता और इस वक्त को ज्यादा से ज्यादा अपने अंतस में समेट लेना चाहता हूं। जीवन में ये मिठास घोलने के लिए शुक्रिया मेरी गिलहरी। लव यू मेरी जान ❣️ 😘
- शेष समाचार अगले पत्र में। तुम्हें ढेर सारा प्यार और दुलार। 💝
- तुम्हारा पिता, 20 जुलाई 2025
© Deepak Gautam

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