तुमने भी सुना होगा न बारिश का संगीत। तुम्हारे और मेरे शहर में एक सी बरसती होंगी ये बूंदें। तन भिगाने वाली बारिश में तो मैं यकीन ही नहीं रखता। जब तक रूह का पोर-पोर न भीग जाए बारिश का मजा ही नहीं। यूँ तो भीग रहा हूँ तुम्हारी याद का झरना भी बारिश में फूट ही पड़ता है और अक्सर साथ भीगता हूँ तुम्हारे। जैसे बारिश के बाद निखर जाती हैं शहर की सड़कें और उनका यौवन। कुछ वैसा ही साफ हो जाता है मन का हर कोना जब तुम साथ हो।
सुनो न किसी रोज फिर उस पहाड़ की चोटी पर चले आओ जहाँ पसरा है तुम्हारी याद का सावन। घर का छप्पर जैसे चू रहा हो, बिन बारिश के भीगना कुछ ऐसा ही है। पानी की बूँदें इकट्ठा करने के तमाम इंतजाम के बाद भी बारिश बंद होने तक टपकना बंद नहीं कर सकते, भले ही जमीन गीली न हो बूंदें गिरती तो फर्श पर रखे बर्तन में ही हैं। मन में होने वाली बरसात भी कुछ ऐसी ही होती है, आत्मा की गलियां गीली न भी हों ठण्डी तो हो ही जाती हैं।
"तुम्हें याद करते-करते कुछ भूलने लगा हूँ,
बारिश में खुद को घोलने लगा हूँ ...फरियाद
सूखने की आवारा और फिर भीगने लगा हूँ "
ये याद और फरियाद न जाने कहाँ से आ गई बीच में। मैं बारिश के संगीत की बात कर रहा था। तो सुनो ये सो चुका शहर और रात का सन्नाटा। दूर तलक पसरी खामोशी को भेदती बारिश की ये बूंदें। उनींदी आँखों में तैरते यादों के बिंब...हाँ तुम यहीं हो मेरे आसपास और बरश रहे हो। मैं तरबतर भीग रहा हूँ, तुम्हें खोना नहीं चाहता। तब तुमने अपनी आँखों से सारी बारिश निचोड़ दी थी...उसमें न जाने कितना बुरा वक्त बहा दिया था हमने। हमारे बीच छिपे अवसाद, खुदगर्जी, इश्किया-बेईमानी और जुदाई के कुछ साल। उसी वक्त महसूस हुआ था मुझे बारिश का संगीत। तुमने भी तो कहा था आओ न भीग लेते हैं सालों बाद ऐसी बरसात आई है।
बारिश का अपना संगीत होता है न वो बजता है तो दिल गाता है और रूहें नाच उठती हैं। करीब से महसूस की थीं वो बूंदें और अजब तराने। वक्त के साथ वो बरसातें फिर जिन्दा होती हैं, सोचता हूँ अब वो मौसमी संगीत तुम्हें सुनाई देता होगा या नहीं। सुनो न उसे अनसुना मत करना गर नहीं सुनाई देता तो कोशिश करो वो बस भीगने से नहीं सुनाई देता। तुम्हें तो पता है, उसके हर तराने को छेड़ना मैंने तुमसे ही तो सीखा है। तुम अबकी भी उस भीगी हवा में बूंदों को सितार बजाना जारी रखना। मैं ये संगीत सुन रहा हूँ सुना तुमने...मुझे बारिशों में इसकी लत लग गई है।
#बारिश के संगीत का एक लतखोर
#आवाराकीडायरी
सुनो न किसी रोज फिर उस पहाड़ की चोटी पर चले आओ जहाँ पसरा है तुम्हारी याद का सावन। घर का छप्पर जैसे चू रहा हो, बिन बारिश के भीगना कुछ ऐसा ही है। पानी की बूँदें इकट्ठा करने के तमाम इंतजाम के बाद भी बारिश बंद होने तक टपकना बंद नहीं कर सकते, भले ही जमीन गीली न हो बूंदें गिरती तो फर्श पर रखे बर्तन में ही हैं। मन में होने वाली बरसात भी कुछ ऐसी ही होती है, आत्मा की गलियां गीली न भी हों ठण्डी तो हो ही जाती हैं।
"तुम्हें याद करते-करते कुछ भूलने लगा हूँ,
बारिश में खुद को घोलने लगा हूँ ...फरियाद
सूखने की आवारा और फिर भीगने लगा हूँ "
ये याद और फरियाद न जाने कहाँ से आ गई बीच में। मैं बारिश के संगीत की बात कर रहा था। तो सुनो ये सो चुका शहर और रात का सन्नाटा। दूर तलक पसरी खामोशी को भेदती बारिश की ये बूंदें। उनींदी आँखों में तैरते यादों के बिंब...हाँ तुम यहीं हो मेरे आसपास और बरश रहे हो। मैं तरबतर भीग रहा हूँ, तुम्हें खोना नहीं चाहता। तब तुमने अपनी आँखों से सारी बारिश निचोड़ दी थी...उसमें न जाने कितना बुरा वक्त बहा दिया था हमने। हमारे बीच छिपे अवसाद, खुदगर्जी, इश्किया-बेईमानी और जुदाई के कुछ साल। उसी वक्त महसूस हुआ था मुझे बारिश का संगीत। तुमने भी तो कहा था आओ न भीग लेते हैं सालों बाद ऐसी बरसात आई है।
बारिश का अपना संगीत होता है न वो बजता है तो दिल गाता है और रूहें नाच उठती हैं। करीब से महसूस की थीं वो बूंदें और अजब तराने। वक्त के साथ वो बरसातें फिर जिन्दा होती हैं, सोचता हूँ अब वो मौसमी संगीत तुम्हें सुनाई देता होगा या नहीं। सुनो न उसे अनसुना मत करना गर नहीं सुनाई देता तो कोशिश करो वो बस भीगने से नहीं सुनाई देता। तुम्हें तो पता है, उसके हर तराने को छेड़ना मैंने तुमसे ही तो सीखा है। तुम अबकी भी उस भीगी हवा में बूंदों को सितार बजाना जारी रखना। मैं ये संगीत सुन रहा हूँ सुना तुमने...मुझे बारिशों में इसकी लत लग गई है।
#बारिश के संगीत का एक लतखोर
#आवाराकीडायरी
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मोबाइल से उकेरी चित्रकारी |
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