बेटी के नाम दसवीं पाती : मैं तुम्हारी शहद से भी मीठी बातों की मिसरी को बहुत याद कलूंगा।
प्रिय मुनिया,
मेरी लाडो, मैं तुम्हें यह पत्र तब लिख रहा हूं, जब हमने रात में तुम्हारी शरारतों का एक छोटा सा वीडियो शूट किया था। पिछले कुछ दिनों में मैंने तुम्हारे कुछ वीडियो बनाए हैं। जल्द ही कुछ और वीडियो शूट करूंगा। तुम्हारी तोतली जबान की मिठास से घुले ये वीडियो तुम्हारे बचपन की सबसे सुखद स्मृतियों में से एक हैं। इन्हें सहेजे जाने के क्रम में यह मेरा पहला कदम है। दरअसल जीवन का सबसे सुखद पहलू यही है कि मोह- माया से भरे इस संसार में जब अपनी संतान से प्रेम के धागे जुड़ते हैं, तब वास्तव में एक पुरुष अपनी पशुता से ऊपर उठकर थोड़ा और अधिक मनुष्यता की ओर कदम बढ़ाता है। तुम अभी यह बात समझने के लिए बहुत छोटी हो, लेकिन फिर भी तुमसे यह बात कह रहा हूं।
क्योंकि अब तुम्हारी बातें बड़ी हो चली हैं। तुम्हें हर वक्त अपने आस-पास मां-बाप और दादा-दादी सब चाहिए होते हैं। सोने से पहले तुम अपने मन की पोटली से सारे रिश्तों के सिरे पकड़कर उनका हिसाब-किताब करना शुरू कर देती हो। मसलन कि दादी कहां है? बब्बा कहां हैं ? आरव, शौर्य और ॐ भैया कहां है? बहना कहां है ? हमारे पास ये सब क्यों नहीं हैं? मैं तुम्हें जवाब देते हुए अक्सर ये सोचता हूं कि यदि इंसानी रिश्तों में इतना प्रेम और फिकर बड़े होने के बाद भी बचा रह जाए तो सचमुच जीवन कितना सुंदर हो जाए।
बहरहाल तुम्हारी तोतली जबान में सना प्रेम मुझे याद दिलाता रहता है कि ये बस कुछ दिनों की बात है। धीरे-धीरे तुम्हारे शब्द साफ होने लगे हैं। महज कुछ वक्त के बाद तुम्हारी जबान से ये तोतलापन गायब हो जायेगा। अभी तुम दिन में हजार बार जब ये कहती हो कि पापा मैं आपसे बहुत प्याल कलती हूं, तो शब्दों की मिठास कानों से घुलती हुई हृदय की गहराई तक पहुंचती है। तुम यहीं नहीं रुकती तुम्हारे मीठे शब्दों के साथ साथ तुम चुंबनों के भी अंबार लगा देती हो। कभी इस गाल पर कभी उस गाल पर कभी माथे पर तो कभी हाथ और उसकी हथेलियों पर। जब मैं रात को 10 से 11 के बीच काम खत्म करके घर पहुंचता हूं, तो ये तुम्हारा रोज का शगल है। सच कहूं तो जब दिनभर की थकान के बाद जब घर लौटना हो और तुम गले से लिपटकर पापा-पापा करती हो, तो जिंदगी के खूबसूरत होने का अहसास होता है।
मेरी लाडो,
मैं तुम्हें यह पत्र लगभग डेढ़ माह बाद लिख पा रहा हूं। यूं तो सोचता हूं और दिल से चाहता भी हूं कि अब कम से कम हर सप्ताह हमारे बीच का अनकहा इन पत्रों में दर्ज होता रहे। लेकिन कामकाजी व्यस्तता और व्यवसायिक उलझनो के बीच मोबाइल पर टाइप करना अब दुष्कर लगने लगा है। इसीलिए बस तुम्हें पत्र लिखने के सिलसिले को जारी रखने के लिए अब मुझे एक लैपटॉप लेने की सूझ रही है। खासकर तुम्हारी मां को इन प्रेम पातियों का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। इन्हें पढ़ने के बाद उसकी सबसे पहली प्रतिक्रिया बस यही होती है कि मेरे बारे में पत्र में कुछ नहीं लिखा है। अब तुम ही कहो कि भला एक मां के प्रेम को शब्दों में बांध पाने और लिख पाने की क्षमता किसी में कहां है ?
यूं भी तुम्हारी मां अपने काम के सिलसिले में हर माह लगभग दस रोज हम दोनों से किस तरह दूर रहती है। ये भला उससे बेहतर कौन समझता होगा ? हर बार तुमसे विदा लेते हुए उसकी आँखें पसीज जाती हैं। जब तुम अपनी तोतली जबान से कहती हो कि ' मम्मा तुम कहां जा लही हो, मीटिंग काम कलने जा लही हो क्या ?' तब उसका जाना और कठिन हो जाता है। ये तुम्हारी मां कि पेशागत जरूरत है कि उसे दफ्तर के चक्कर में अक्सर भ्रमण पर रहना पड़ता है। इस छोटी सी उम्र में तुम ये समझ पाती हो और उसे पूरे प्रेम से विदा करती हो। ये देखकर मैं आश्चर्य से भर जाता हूं कि साढ़े तीन साल की बच्ची इतनी बेफिक्री से आखिर कैसे अपनी मां से दूर रह पाती है ? अगले ही पल विचार आता है कि बेटियां प्रेम की वो बारीक डोर हैं, जो दो परिवारों को अपने संस्कारों से जोड़े रखती हैं।
इस पुरुष प्रधान समाज में हम सदियों से देखते चले आ रहे हैं कि बाप के घर से बेटियां ही विदा होती हैं। बेटों की विदाई अभी भी इस समाज में इतनी सहज स्वीकार्य नहीं है। वो शायद इसलिए भी कि पुरुष के अंदर अपना बसेरा छोड़कर नया संसार रचने की क्षमता ही नहीं है। प्रकृति ने नारी को ही नया रचने का वरदान दिया है। मैं ये मानता हूं कि विज्ञान कितना भी आगे चला जाए पुरुष में मां जितनी ममता, त्याग, समर्पण और प्रेम नहीं भर सकता है।
मेरी मुनिया,
मैं ये पत्र लिखते-लिखते कहां से कहां पहुंच गया ? मुझे पता ही नहीं चला। कायदा तो ये है कि हमारे बीच की बतकही और प्रेम ही इन पत्रों में उकेरा जाए, लेकिन कभी-कभी दुनियावी बातें भी इसमें ना चाहते हुए लिख ही जाती हैं। यह सब लिखने का एक ही मकसद है कि तुम यह जान सको कि जीवन में बेटी के आने के बाद एक पुरुष की देह में धंसा पिता कैसे धीरे-धीरे बाहर आता है। इन प्रेम पातियों की बतकही को समझने में तुम्हें शायद वक्त लगेगा। तुम यह भी शायद ही समझ पाओ कि बेटियों जितना स्नेह एक पिता अपने पुत्र को नहीं दे पाता है। कम से कम मुझे तो यही लगता है। ईश्वर से किसी वरदान की तरह तुम्हें मांगा था और भगवती की कृपा से तुम ही हमारे संसार में प्रेम का रस भरने चली आई। मेरी जान आगे समाचार यह है कि लगभग एक पखवाड़े बाद फिर से तुम्हारा स्कूल शुरू हो जाएगा। तुम सुबह से दोपहर तक के लिए स्कूल में व्यस्त रहोगी, जैसा कि अभी कहती रहती हो मैं स्कूल दाऊंगी, पापा और मम्मा मीतीग काम के लिए ओफिस दायेंगे.. ओफिस। शायद कुछ ही दिन और तुम्हारा ये तोतलापन हमारे जीवन में माधुर्य घोलता सकेगा। क्योंकि अब तुम्हारे शब्द पहले से साफ निकलने लगे हैं। र को ल और ज को द कहने के अलावा अब कुछ भी तुम्हारी जबान में गड़बड़ नहीं रह गया है, तो मेरी जान तुम्हारे तोतलापन से मिल रही मिठास हमारे जीवन से कुछ वक्त बाद ओझल हो जाएगी। मैं तुम्हारी शहद से भी मीठी बातों की ये मिसरी को बहुत याद कलूंगा।
जैसा कि तुम विदा लेते समय कहती हो अपना ध्यान लखना। हम फिल मिलेंगे। यहीं इन्हीं पत्रों की दुनिया में अपने हिस्से के कुछ और किस्से जज्ब करने के लिए। इस तोतली मिठास के लिए शुक्रिया मेरी गिलहरी। लव यू मेरी जान ❣️ 😘
- शेष समाचार अगले पत्र में। तुम्हें ढेर सारा प्यार और दुलार। 💝
- तुम्हारा पिता, 17 जून 2025
© Deepak Gautam
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