मेरी आवारगी

एक कविता : पिता


पिता

पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं।
वे कभी न क्षीण होने वाला आत्मबल हैं।
संतान के लिए उनका त्याग निश्छल है।
उनकी मुट्ठियों में हर दुविधा का हल है।
वे त्याग का बहता हुआ निर्मल गंगाजल हैं।
पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं।

बच्चों के दुःख में जो सदैव रहता व्याकुल है।
विकट परिस्थिति में संतान का सबसे बड़ा बल है।
जिनके सीने में धंस गए दर्द के बड़े-बड़े महल हैं।
उनकी शांत आंखों में दुनियाभर की हलचल है।
फिर भी दिखाई नहीं देती वहां कोई मुश्किल है।
पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं।

मन की बंजर जमीन पर वे संस्कारों का चलता हल हैं।
संतान की ऊसरता को उर्वरता में बदलने वाला जल हैं।
पिता ही बच्चों के बेहतर भविष्य का सुनहरा कल हैं।
वे अपनी नींद तुम्हारी आंखों में भरने वाला एक पल हैं।
तुम महसूस करोगे तो पिता का प्रेम जल की तरह शीतल है।
पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं।

बच्चों की जीत में जो खुद को हार जाए वो खिलंदड़ हैं।
पिता किसी अव्याखित महाकाव्य का महाखंड हैं।
उन्हें कुछ शब्दों में कहां लिख पाओगे?
वे ना ही कहानी ना ही कोई छंद हैं।
वे तो जीवन के रंग- रूप का चलता-फिरता एक ढंग हैं।
उनसे पूछ लो जो अनाथ हैं, पिता बिना जीवन बदरंग है।
तुम्हारी आत्मा की मैली चादर का वो सबसे सफेद रंग हैं।
बस इसीलिए कहता हूं कि पिता जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं। पिता ही जीवन का सबसे बड़ा संबल हैं।

- 15 जून 2025
© दीपक गौतम
#आवाराखयाल #aawarakhayal
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