प्रिय मुनिया,
मेरी लाडो, मैं तुम्हें यह पत्र तब लिख रहा हूं, जब लगभग माह भर के लिए स्कूल जाने के बाद तुम्हारी छुट्टियां शुरू हो चुकी हैं। अब अगले सत्र से तुम्हारी कक्षाएं फिर से प्रारंभ होंगी। तुम्हारा मासूमियत से भरा दिल अब जाकर घर से बाहर की दुनिया से परिचय पा रहा है। इन एक महीनों में तुम्हारे अंदर काफी बदलाव देखने को मिले हैं। अब तुम तोतली जबान से कुछ ज्यादा ही पटर-पटर बतियाने लगी हो। तुम्हारा शिकायतें करने का अंदाज बदल गया है। तुमने बातें बनाना शुरू कर दिया है। ये जो भी बहुत खूबसूरत है। कभी-कभी लगता है कि तुम्हारे बचपन के ये सारे दिन रिकॉर्ड के लेने चाहिए। बहरहाल मैं आज ये पत्र तुम्हारी जिद और इमोशनल ब्लैकमेलिंग को लेकर लिख रहा हूं, ताकि ये भी दर्ज हो सके कि बच्चों के प्यार के आगे मां-बाप किस कदर और किस हद तक बेबस हो जाते हैं। ये लाड़-प्यार भरे तुम्हारी परवरिश के सुनहरे पलों का अहसास तुम्हें शायद ये पत्र पढ़कर नहीं होगा, क्योंकि संतान प्राप्ति के बाद ही इस अनुभव से गुजरा जा सकता है।
प्रिय मुनिया,
मेरी लाडो, बीती बार 4 अप्रैल को जब तुम्हें पत्र लिखा था, तब मैं एक यात्रा में था। यह भी खूब संयोग है कि इस बार भी मैं एक दिवसीय यात्रा में ही हूं। अक्सर तुम्हें पत्र लिखने का तभी सूझ पाता है, जब तुम मुझसे दूर होती हो। अप्रैल के शुरुआती सप्ताह में हम सब चार रोज के लिए वृन्दावन में थे। वहां तुम्हारे फेवरेट सिद्धू चाचू का शरणागत आश्रम से जनेऊ संस्कार था। तुम्हें तो शायद याद भी नहीं रहेगा कि साढ़े तीन साल की उम्र में तुमने कितना गदर काटा था। मेरी जान तुमने एक पग जमीन पर नहीं रखा। वृन्दावन के हर मंदिर के दर्शन के वक्त तुम मां-बाप और चाचू के कंधे या गोदी पर ही चढ़ी रही हो। भले ही हम में से कोई चलते-चलते थककर चूर हो गया हो, तुम्हें तो बस गोदी पर ही रहना था। वहीं तुम्हारी उम्र के बच्चे हमें चलते-फिरते नज़र आ रहे थे। लेकिन मजाल है कि तुम्हारा एक पग जमीन पर रख जाए।
बिटवा, तुमने बरसाना में राधा रानी के मंदिर की सीढ़ियों में तो अजब ही जिद पकड़ ली थी। मैं तुम्हें कंधे पर लादकर सीढ़ियां चढ़ रहा था, लेकिन तुम्हें कंधे पर नहीं बैठना था। मेरी छाती से चिपटकर गोदी में चलना था। मैं बहुत थक गया था और दर्द से कराह रहा था, क्योंकि वृन्दावन जाने के एक सप्ताह पहले ही अपने शॉप की सीढ़ियां उतरते वक्त पैर फिसल जाने से कमर के बल गिरने से मेरी 'टेल बोन' क्रैक हो गई थी। मेरा लापरवाह रवैया ही है कि उस वक्त मुझे ये पता भी नहीं था। मैंने एक्सरे डॉक्टर को व्हाट्सअप पर भेजकर इतिश्री कर ली थी। उन्होंने भी कहा था कि वैसे तो सब सही है, फिर भी एक बार एक्सरे की हार्ड कॉपी दिखा देना, लेकिन वो मैं अभी 4 रोज पहले दिखा पाया हूं। तब जाकर पता चला कि मुझे वजन नहीं उठाना है, पूरी तरह से झुकना नहीं है। लगभग वो अब तमाम परहेज जिनको मैं माहभर से दरकिनार करता चला आ रहा हूं। क्योंकि इस चोट को मै हल्के में ले रहा था। मुझे अपनी इस 'चोट-पुराण' पर कुछ नहीं लिखना था। लेकिन तुम्हें ये समझाने के लिए लिखना पड़ा कि अमूमन हर मां-बाप कैसे अपना हर दर्द बच्चों की हंसी में घोल देते हैं।
प्रिय मुनिया,
मेरी लाडो, तुम्हें ये जानकर हैरानी होगी कि जब तुम्हें राधा रानी के मंदिर में चार पल के लिए सीढ़ी चढ़ने के नीचे उतारा, तो तुमने रो-रोकर आस-पास वाले दर्शनार्थियों की नज़रों में मुझे गुनहगार साबित कर दिया। दूसरा ये कि तुमने आजकल एक नई लाइन रट ली है हमें इमोशनल ब्लैकमेल करने के लिए कि
'पापा आप मुझे प्यार नहीं करते '। ना जाने ये लाइन तुमने कहां से सीखी है, लेकिन ये आजकल हमसे हर बात मनवाने का तुम्हारा सबसे अचूक हथियार है। अभी कल रात को ही सोते वक्त तुमने कहानी सुनाने की जिद की। मैं थकान भरे दिन के बाद नींद से भरी बोझिल आंखों को जबरन उघाड़ता हुआ कहानी सुना ही रहा था कि बार-बार मेरी आँख लग जा रही थी। जैसे ही मैं नींद की झोंके में आता, तुम हिलाकर कहती आप बोल क्यों नहीं रहे हो पापा। आप मुझसे प्यार नहीं करते। बस यही सुनकर मुझे नींद त्यागकर तुम्हारे सो जाने तक कहानी सुनानी पड़ी।
मेरी जान, ऐसे कई किस्से हैं, जिनके बारे में तुम्हें पहले भी थोड़ा बहुत लिख चुका हूँ। न जाने कितनी रातें तुमको सुलाने में जागते हुए बीत गई हैं। बड़ी मुश्किल से तुमने गोद में सोने की।आदत छोड़ी है। वरना नाहक ही रात-रातभर बैठकर पैरों से झुलाते हुए तुम्हें सुलाना पड़ता था। खुद अगर कमर से ऊपर के आधे शरीर को बिस्तर पर धकेला जाता, तो तुम गिरेबान पकड़ कर अपनी ओर खींच लेती थी। बहरहाल तुम्हारी ये सब आदतें हमें बताती हैं कि हमारे मां-बाप ने भी यूं ही रतजगा करके हमें पाला होगा। मुझे लगता है कि जीवन में जब ये अनुभव कोई भी संवेदनशील इंसान पाता है, तो अपने माता-पिता के प्रति और आदर से भर जाता है। वो पहले से थोड़ा और अधिक मनुष्य होने की चाह रखता है। उसका हृदय थोड़ी और करुणा व दया से भर जाता है। बस इसीलिए मेरी जान मुझे थोड़ा और अधिक मनुष्य बनाने के लिए तुम्हारी सारी नादानियां माफ। तुम मेरी वो जादू की पोटली हो, जिससे हर रोज मुझे जिंदगी के कुछ और खूबसूरत पल मिल ही जाते हैं। मुझमें थोड़ी सी और मनुष्यता भरने के लिए शुक्रिया मेरी गिलहरी। लव यू मेरी जान ❣️ 😘
- शेष समाचार अगले पत्र में। तुम्हें ढेर सारा प्यार और दुलार। 💝
- तुम्हारा पिता, 1 मई 2025
© Deepak Gautam
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नोट : यह श्रृंखला अनुबंध के तहत अपनी डिजिटल डायरी में प्रकाशित हो रही है। इसे लेखक की अनुमति के बिना कहीं और प्रकाशित नहीं किया जा सकता है।
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