मेरी आवारगी

बड़ा मुश्किल है प्रेम में अलविदा कहना

बड़ा मुश्किल है प्रेम में अलविदा कहना
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मैंने कब कहा कि तुम प्रतीक्षारत रहो। 
मैं अकिंचन की तरह समय की देहरी पर 
जब तुमसे विदा ले रहा था। 
वहीं ढलते रिश्ते की सांझ में बिंधा रह गया था। 

स्मृतियों के द्वार से तुम कभी निकले ही नहीं बाहर। 
ठिठककर अठखेलियां करतीं तुम्हारी यादें अब भी सिमटी हैं मन के किसी कोने में। 

थरथराते अल्फाजों से, कांपते हुए हाथों से, 
मेरी निढाल खड़ी देह से शायद विदा ली हो तुमने। 
मेरी आत्मा में घर कर चुके प्रेम से भला विदा लेना कहां संभव था ?

तुमने विदा ले भी ली हो तो क्या,
 मैं तो कभी रीत ही नहीं पाया प्रेमपाश से, 
मुक्त ही नहीं हुआ उस अभेद बाण से। 
बिछोह की पीड़ा भी जब आनंद बन जाए, 
तो समझना प्रेम घर कर गया है। 

किसी ने खूब कहा है कि प्रेम ही 
प्रेम से मिले घावों का मरहम है। 
मैं प्रेम के उसी लेप के लिए देह धरे प्रेम पिशाच हो गया हूं। 

अभागा नहीं हूं, किंतु ये सौभाग्य भी क्या कम है कि 
संभव ही ना हो सका विदा लेना। 
तुम ठहर गए हो सदा के लिए मन के अंदर। 
क्योंकि बड़ा मुश्किल है प्रेम में अलविदा कहना...
बड़ा मुश्किल होता है प्रेम में अलविदा कहना। 

- जून 2022

© दीपक गौतम 

#आवाराखयाल #aawarakhayal

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