मेरी आवारगी

आतंक ही आतंक है ...

आतंक ही आतंक चारो ओर पसर गया
कि कोरे कागज में जैसे मस बिखर गया।
कहीं बम धमाके तो कहीं बरसे गोलियां
हर तरफ़ बस अब खूनी होलियाँ।
आजादी के बाद भी बस खौफ का साया है
'आवारा' खास हो या आम हर शख्स  गमजदा।

आज परिस्थियाँ इतनी विषम हो गई हैं कि घर के अन्दर भी इन्सान सुरछित नहीं है। आतंक के हाँथ अब कानून के हाँथ से भी लंबे नजर आने लगे हैं तभी तो सुरछा का मजबूत घेरा तोड़कर आतंकी संसद में भी विस्फोट करने से नही चूकते, ये आतंकवाद वो दीमक है ,जो धीरे -धीरे हमारी आजादी ,एकता ,अखंडता और शान्ति को चट कर रहा है। हर बार बैठक होती है और बैठ जाती है उसके सकारात्मक प्रभाव कही दिखाई नही देते हैं। जब घटना हो जाती है तब उस पर विचार होता है चाहे जयपुर के बम ब्लास्ट हों या अहमदाबाद के। पुलिस के खुफिया सूत्रों के कानों मे घटना होने से पहले जूं तक नही रेंगती है। सीमा की चाक-चौबंद तो इतनी मजबूत है की देश के अन्दर हंथियारो का जखीरा आतंकियों को आसानी से उपलब्ध हो जाता है। मामला साफ है की कही न कही गोल- माल है वरना इतनी आसानी से हर सुरछा घेरा तोड़कर ये आतंकी खूनी खेल कैसे खेल जाते हैं। अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र तक इस तबाही से गुजर चुके हैं।

Post a Comment

2 Comments

Udan Tashtari said…
सही कह रहे हैं.
अवाम said…
atank k alawa begairat rajneet v hai mere dost