जिंदगी में मोहब्बत का साइक्लोन फिर से दस्तक दे चुका था।
************************
अनन्य बड़ी मुश्किल से अपनी बेकरारी को संभालते हुए हवा को चीरता ठीक 9 बजकर 15 मिनट में अनन्या के कमरे के नजदीकी अमूल पार्लर पर खड़ा था। हेलमेट उतारते ही उसने अपने बेताब दिल की धक-धक को सुना, जो उसके गाँव के लोहार काका नोनेलाल की धौंकनी से तेज धड़क रहा था। खुद को थोड़ा संयत करते हुए उसने सबसे पहले घड़ी की सुइयों को ओर देखा। वो मानता था कि भले लड़के अक्सर मोहब्बत में माशूक को इंतजार कराना नहीं, बल्कि हाथों में गुलदस्ता लिए उसकी राह तकना अपनी खुशनसीबी समझते हैं। इसीलिए ये देखकर वो आश्चर्य से भर गया कि महज़ 15 मिनट में उसने अपाचे से फर्राटा भरते हुए मिनाल रेसिडेंसी से एमपीनगर तक का रास्ता नाप दिया था। हालांकि अनन्या अभी तक उसे नज़र नहीं आ रही थी।
वो यह देखकर तसल्ली महसूस कर रहा था कि समय पर पहुंच गया है, उसने जींस के जेब से नोकिया 2600 को आजाद करते हुए मोहतरमा का नंबर डायल कर फोन कान पर रखा ही था कि "वीर जारा" फिल्म के गाने "तेरे लिए हम हैं जिए हर आंसू पिये, दिल में मगर जलते रहे तेरी चाहत के दिए" वाली सुपरिचित सी रिंगटोन बज उठी थी। इसी रिंगटोन ने एक रात पहले उसकी गहरी निंद्रा को भंग कर दिया था, क्योंकि शनिवार का वीक ऑफ होने के नाते वो दफ्तर की टेंशन से मुक्त होकर 11 बजे ही घोड़े बेचकर सो गया था। अब भला उसे क्या पता था कि अगले पहर 12 बजते ही उसकी जिंदगी में मोहब्बत का साइक्लोन फिर से दस्तक देने वाला है।
बहरहाल कॉल रिसीव करते ही उधर से शिकायती अंदाज में कहा गया कि मैं अमूल पार्लर के पास हूं, तुम पहुंचे नहीं अब तक ? अनन्य कुछ बोलता कि इसके पहले ही सामने से सफेद लिबास में लिपटी उसकी जिंदगी चली आ रही थी। अनन्या की तमाम बेअदबियों के बावजूद अनन्य ने आज तक कभी उससे ऊंची आवाज में बात तक नहीं की थी। उसने हंसते हुए शायराना अंदाज में अपनी लिखी दो पंक्तियां चिपकाते हुए कहा कि
"वो शिकायत करते हैं कि मेहरबाँ आते-आते बड़ी देर कर दी, हम तो उनकी राहों में दिल बिछाए बैठे हैं, उन्होंने ही हद कर दी"
अनन्या ने अपाचे की पिछली सीट पर अपना हक जताते हुए बैठते ही कहा कि "अपनी चीप शायरी छोड़ो और जल्दी चलो। आज संडे है मेरे बॉस का वीक ऑफ रहता है। मुझे स्पोर्ट डेस्क अकेले ही संभालना होगा। ये कोई मज़ाक नहीं है।"
अनन्य ने हाज़िर जवाबी से कहा कि " इक तो ये साला तुम्हारा अखबार पिद्दी सी सैलरी में खून चूसता है खून। मुझे देखो कल सैटरडे का अपना वीक ऑफ तो था ही और आज मैंने एडवांस में वेलेंटाइन डे मनाने के नाम पर बॉस का ही एक वीक ऑफ चाट लिया है।" अपाचे का सेल्फ और आँख मारते हुए अनन्य बोला मोहतरमा मोहब्बत और जंग में सब जायज है। बॉस का एक वीक ऑफ नहीं खा सकीं तुम...उफ़। क्या यार ? फिर सालों बाद की इस गफलत भरी मुलाकात का क्या मतलब ? जब तुम्हारे पास वक्त ही नहीं है, तो मुझे मिलने का समय ही क्यों दिया ?
इससे पहले कि अनन्य एक्सलरेटर देकर अपाचे को आगे बढ़ाता महबूबा ने दोनों हाथों से बड़े दिनों बाद मिले महबूब के कमर की दोनों बगलों की प्यार से चिकोटी काटते हुए कहा-"चलो न बाबा प्लीज...यहीं खड़े-खड़े सारा पचौरा कर लोगे क्या? मैंने सर को बोल दिया है मॉर्निंग मीटिंग नहीं करूंगी और आज थोड़ा लेट भी जाऊंगी शाम को 6 बजे तक। कुछ समझ आया।"
ये सुनते ही आशिक की रगों में 120 की रफ्तार से जैसे खून नहीं मोहब्बत दौड़ गई हो। उसने अपने कंधे तक आ रही जुल्फों को संवारते हुए हेलमेट लगाया और अगले ही पल उसकी बाइक हवा से बातें कर रही थी। एमपीनगर के बोर्ड ऑफिस चौराहा से वाया न्यू मार्केट-वीआईपी रोड होते हुए मनुआभान टेकरी के लिए अनन्य ने बाइक दौड़ा दी थी। वो जल्द से जल्द टेकरी पहुंचना चाह रहा था। उसे जून 2012 के इस सवेरे की धूप भी आज बिल्कुल तेज नहीं लग रही थी। बहुत हल्की सी तपिश में घुली सुबह की मंद हवा भी उसके जिस्म को ठंडक ही दे रही थी।
न्यू मार्केट रोड पर 74 बंगले वाला मोड़ क्रॉस होते ही अनन्य खुद को महबूबा की बाहों की गिरफ्त में महसूस कर रहा था। उसे फिर पुराने दिन याद आ रहे थे। प्रेस कॉम्प्लेक्स स्थित एमसीयू कैंपस में हुई उसकी पहली मुलाकात और पहले सेमेस्टर के खत्म होने से पहले ही फ्रेशर्स पार्टी वाले दिन अनन्या का इज़हार-ए-मोहब्बत। वो सबकुछ उसकी आँखों के समंदर में तैर गया था कि जैसे सामने कोई फिल्म चल रही हो। तभी अचानक हेलमेट से बाहर आकर झंडे की चोटी की तरह फहरा रही उसकी जुल्फों को घोड़े की लगाम समझकर अनन्या से जोर से खींचा था। अगले ही पल अनन्य अपाचे की डिस्क ब्रेक पर एकदम चढ़ गया था। वो आईटीआई चौराहे को क्रॉस ही करने वाला था, लेकिन चौतरफा ट्रैफिक के बीच सिग्नल तोड़कर जाते बाइक सवार से लड़ते-लड़ते उसकी जुल्फों वाली लगाम ने उन दोनों को ही बचा लिया था।
अनन्या ने जोर से चिल्लाते हुए कहा था कि कहां खो गए हो ? सामने वाला नशे में है शायद ...! लगता है तुम भी आज सुबह-सुबह भांग चढ़ाकर आए हो क्या? सिग्नल खुलते ही अनन्य अपने लापरवाह अंदाज में बोला- मैंने कल ही हमारी इस तय मुलाकात पर लिखा था कि
"सोए तो हम पहले भी थे तेरी गोद में सर रखकर, मगर आज रूह को मिले सुकून ने कहा या खुदा दम निकल जाए यहीं सिसक-सिसक कर"
अब तुम ही कहो कि यूँ भी तुम्हारे साथ जिंदगी नसीब हो नहीं रही है, तो कम से कम तुम्हारे साथ मौत ही आ जाती। भला इससे बेहतर क्या होता। अनन्या का मन जैसे कसैला हो गया हो। वो भी ना जाने किस सोच में डूब गई थी। उसने अनन्य की बातों पर प्रतिक्रिया देने में कुछ सेकेंड्स से ज्यादा का ही वक्त ले लिया था। बाइक अब चार सीढ़ी की मस्जिद से होते हुए कमलारानी पार्क तक पहुंच चुकी थी। अनन्य ने ब्रेक मारते हुए बाइक ठीक पार्क के उलट बड़ी झील के उसी मुंडेर पर लगा दी थी।
सहसा अपाचे के रुकते ही अनन्या का सर हेलमेट से टकरा गया था, उसकी तंद्रा टूटने से पहले उसका गुस्सा जाग गया था। उसने लगभग डांटते हुए अनन्य से कहा - क्या करते हो यार ? तुम्हें एकदम शऊर नहीं है बाइक चलाने का। ये अपाचे तुम्हारे बस की नहीं है अपनी पल्सर ही लेकर आए होते। बड़ा लड़कियों को इंप्रेस करने आए हैं अपाचे लेकर। सर फोड़ दिया मेरा। अभी सालभर पहले ही सीखी है ना तुमने बाइक। मेरी ही स्कूटी में पीछे बैठकर पूरा भोपाल भ्रमण किया है तुमने। यहां बाइक क्यों रोकी अचानक ?
यूँ तो अनन्य बेहद गुस्सैल स्वभाव का था, लेकिन ना जाने क्यों अनन्या के सामने वो गुस्से को गंगाजल की तरह पी जाता था। उसने थोड़ी तेज मगर सधे हुए स्वर में कहा- "ये मेरा हुनर है कि एक गाँव का लौंडा सालभर में बाइक सीखकर सीधा राजधानी की सड़कों पर दौड़ा रहा है। तुम तो जानती हो कि मुझे अपनी कमाई से खरीदी दुपहिया से ड्राइव करना सीखना था। इसीलिए कभी नहीं सीखा और हां मेरी पल्सर सर्विसिंग के लिए कल दोपहर बाद ही एजेंसी में देकर आया हूं। अब मंडे को ही मिलेगी। दूसरा कि ये बाइक भी मेरे भाई की है। कोई उधार या चोरी की नहीं। देखो सुबह-सुबह बेमतलब में मत उलझो, अभी चंद घंटे भी नहीं हुए मिले। झगड़ा शुरू कर दिया। तुम्हें फूल बहुत पसंद हैं, वो देख उस तरफ पार्क के सामने तेरे लिए बुके बनवाने जा रहा था। बस इसीलिए खड़ी की है बाइक। मुझे डिवाइडर क्रॉस करके उस तरफ जाना पड़ेगा। "
अनन्य बिना और एक शब्द बोले डिवाइडर क्रॉस करने के लिए आगे बढ़ गया था। तेजी से रोड के उस पार जाते ही उसने पार्क के सामने लगी फूलों की छोटी सी दुकान में बैठी बुर्के वाली अम्मा से कहा- "कों चची जे बुके कित्ते में दे रिये। उन्ने कही 24 गुलाब बाले गुलदस्ते पूरे 200 रुप्पये में पड़ रिये हेंगे।" अनन्य ने छुट्टे देकर फटाक से बुके लेकर लौटने में ही भलाई समझी, क्योंकि उस तरफ गुस्से में लाल टमाटर हो रही खूबसूरत बला जो खड़ी थी। वरना उसे भोपाली में बात करना बहुत भाता था। हालांकि भोपालियों का हर दूसरी बात पर (माक......-भेंका....) करना उसे एकदम गैरजरूरी लगता था। लेकिन ये उसे नहीं पता था कि जैसे बनारस में हर हर महादेव उच्चारते ही हर बनारसी भ पर ओ की मात्रा वाली (भो.........के) गाली देना अपना जन्म सिद्ध अधिकार समझता है। जैसे वो भद्दपन भाषा की देशज मिठास लिए बनारस की नस-नस में है। ठीक वैसे ही भोपाली जबान "कों खाँ, मियां, (माक......और भेंका.......)" जैसे शब्दों के बिना विधवा सी लगेगी। शायद यही बोली की सुंदरता है।
उस पार खड़ी लाल-पीली हो रही लड़की ने जैसे ही उम्मीद से ज्यादा दो दर्जन रंगबिरंगे गुलाब देखे, तो खुशी से जैसे बावली हो गई। अनन्य जानता था कि मेरी इस कली को फूल बहुत पसंद हैं। उसने रोमांटिक अंदाज में झुककर बुके देते हुए कहा कि अब भी गुस्सा हो जानेमन। वो बोली तुम मुझे मनाना अब तक नहीं भूले। अच्छी तरह जानते हो कि छोटी-छोटी बातों और चीजों से मुझे खुशी मिल जाती है। अब चलो भी धूप तेज हो रही है और 10 बजने को हैं। यूं भी तुम बहुत धीमी रफ्तार से बाइक चलाते हो।
अनन्या को मुस्कराते देखकर अनन्य ने राहत की सांस ली और हेलमेट उसे पकड़ाते हुए अपनी जुल्फों को झटकर कर चश्मा ठीक करते हुए अपाचे का सेल्फ दबा दिया। अनन्या ने उसके लड़कियों जैसे लंबे इतने प्यारे घुंघराले बाल इतनी करीब से पहली बार देखे थे। यूँ तो वो उससे बीते दो सालों में जब भी टकराई एकदम किनारा कर लिया था। लेकिन अनन्य का बदला हुआ लुक हो या अनन्या का जाग उठा जमीर वो उसे फिर से अपनी जिंदगी में वापस देखना चाहती थी। उसने अपाचे के रफ्तार भरते ही अनन्य के कान में चिल्लाकर कहा- "क्या बात है अनन्य...मेरे बाद किसी और लड़की से मोहब्बत हो गई है क्या ?बड़ा स्टाइलिश रहने लगे हो आजकल। लंबे बाल, चश्मा, फटी रिब जींस, शॉर्ट अरमानी कुर्ता, स्नीकर शूज और ये बाइसेप्स। एकदम नए अवतार में लग रहे हो, मॉडलिंग का इरादा है क्या ?।"
अनन्य ने जोर से ठहाका लगाया और कहा कि "सब तुम्हारा करम है मेरी जान। तुमने जैसे ही मुझ पर ध्यान देना छोड़ दिया, तो लगा कि अंदर तो सब खोखला हो रखा है। जिस्म को ही बाहर से मढ़ लेता हूं। शायद मुझ पर नज़र पड़े और तुम्हारा इरादा बदल जाए। इसीलिए तो भोपाल नहीं छोड़ा।"
यूँ ही एक दूसरे को छेड़ते हुए नोक-झोंक के साथ वो मनुआभान की टेकरी के नीचे तक पहुंच गए थे। अब टेकरी तक ऊपर जाने वाली खड़ी चढ़ाई की 3 किलोमीटर लंबी सड़क को पार करना बाकी था। अनन्य ने अपाचे बंद करके अनन्या के हैंडबैग से पानी का बॉटल निकालकर दो चार घूंट मारते हुए 5 मिनट का पॉज लिया। इसके बाद गाड़ी को पहले और दूसरे गियर में रोटेट करते हुए उसने 10.45 पर टेकरी की पार्किंग में अपाचे पार्क कर दी। ये बात और है कि उसकी दिल की जमीं पर अनन्या नाम का जहाज लैंड तो हो गया था, लेकिन उसकी स्थायी पार्किंग की जगह अनन्य का दिल नहीं बन पा रहा था।
कांपते होठों से ही सही अनन्य ने बाइक से उतरते ही अनन्या के हाथों में एक हल्का का चुम्बन दे दिया था। अनन्या ने हाथ झटकते हुए कहा- क्या कर रहे हो ? पागल हो गए हो क्या ? अनन्य ने एक पल के लिए खुद को ठगा सा महसूस करते हुए कहा तो आप ही फरमाइए कहां जाना है ?
अरे यहीं जाना है बाबा, तुम बुरा मत मान जाया करो। मेरी साइड से लड़की होकर भी सोचा करो। सामने मंदिर है। यहां सब लोग आते हैं ? किसी पहचान वाले ने देखा तो बातें बनाएंगे।
हमें सबसे पहले वहां मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करना है, फिर उसके पीछे जो चट्टानों और हरे-भरे पेड़ों से भरी ये टेकरी है, उसी की गोद में सर रखकर सोना है। मतलब वहां बैठकर बहुत सारी बातें करना है। अनन्या के रुंधे गले से निकली लड़खड़ाती आवाज बीच-बीच में हवा के झोंके से जैसे उड़ सी जा रही थी। दो कदम के फासले पर खड़े अनन्य को भी सही से सुनाई नहीं दे रही थी। लेकिन उसकी आँखों से झरते आँसुओं को अनन्य देख पा रहा था। वो कह रही थीं कि मुझे तुमसे बीते दो सालों में जो हुआ उसके बारे में बहुत कुछ बताना है।
प्लीज चलो ना अनन्य। वहां से भोपाल का नज़ारा भी बहुत प्यारा दिखता है। तुम्हें तो नेचर से बहुत प्यार है। यकीनन इसे देखकर तुम्हें गाँव का कोई पहाड़ याद आ जायेगा। तुम गाँव को याद करना और मैं तुम्हारे साथ वहीं बैठकर शांति से जीभर कर बातें करूंगी। मैं तुम्हारी आँखों में खुद को निहारना चाहती हूँ। मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई है अनन्य। मैं तुम्हारी आँखों में आँखें डालकर तुमसे दिल से एक आखिरी बार माफी मांगना चाहती हूँ। क्या तुम मुझे माफ नहीं करोगे यार ? हम इस रिश्ते के पहले एक दूसरे के सबसे अच्छे दोस्त थे ना। तुम्हें हमारी उस दोस्ती की कसम।
अनन्य कुछ और सोचता या समझता अनन्या की डबडबाई आँखों ने उसका दिल पसीज दिया था। ना जाने क्यों उसकी रूह में अनन्या का माफीनामा सुनने के बाद भी एक अजीब सा डर था कि जैसे कोई समुद्री तूफान (साइक्लोन) आने वाला है और उसकी मोहब्बत का टाइटैनिक डूब जाएगा।
इसके पहले कि अनन्य कोई फौरी प्रतिक्रिया देता अनन्या उसका हाथ पकड़कर उसे मंदिर की ओर ले जाने लगी थी...!!
© दीपक गौतम
#आवाराकीडायरी #aawarakiidiary
- क्रमशः जारी। आगे पढ़िए "आवारा की डायरी" - 3 कड़ी में।
नोट : यह श्रृंखला अनुबंध के तहत अमर उजाला ब्लॉग में प्रकाशित हो रही है। इसे लेखक की अनुमति के बिना कहीं और प्रकाशित नहीं किया जा सकता है।
डिस्क्लेमर : यह 'आवारा की डायरी' नामक अप्रकाशित उस पुस्तक के स्मृति शेष अंश हैं, जिसकी पांडुलिपि तकनीकी खामियों से सालों पहले लैपटॉप से उड़ गई। अब स्मृतियों के जखीरे से यादों को कुरेद- कुरेदकर कड़ी दर कड़ी उसे फिर से जीवित करने का यह प्रयास मात्र है। इसे किसी साहित्यिक कृति का दर्जा नहीं दिया जा सकता है। क्योंकि 'आवारा की डायरी' अब स्मृति कथा ही शेष रह गई है। उसका मूल स्वरूप कहीं खो गया है।
---------------------------------
0 Comments