हाँ मैं पत्रकार हूँ मेरे लिए सब खबर है
तुम्हारी आह और अहा भी।
कागज के पन्नों में लपेटकर दर्द और ख़ुशी सब बेचता हूँ।
हर एक राजा और रंक की व्यथा-कथा,
शैतान और भगवान सबके जन्म और मृत्यु के उत्सवों से काले करता हूँ अखबार।
तुम्हारी आह और अहा भी।
कागज के पन्नों में लपेटकर दर्द और ख़ुशी सब बेचता हूँ।
हर एक राजा और रंक की व्यथा-कथा,
शैतान और भगवान सबके जन्म और मृत्यु के उत्सवों से काले करता हूँ अखबार।
कहीं किसी घोटाले का भार तो कहीं कोई भ्रष्टाचार,
ईमानदार होकर लिखने का पैसा अब कहीं-कहीं ही मिलता है।
बदले वक्त में मालिक के धंधे का मुनाफ़ा भी मेरे हिस्से है।
ईमानदार होकर लिखने का पैसा अब कहीं-कहीं ही मिलता है।
बदले वक्त में मालिक के धंधे का मुनाफ़ा भी मेरे हिस्से है।
ऐसे में मर जाती हैं या मार दी जाती हैं कई खबरें,
जिनसे होता है सरोकार।
तुम खबर पढ़कर देते हो गाली और निकाल लेते हो
मुझे बिका कहकर अपनी भड़ास।
जिनसे होता है सरोकार।
तुम खबर पढ़कर देते हो गाली और निकाल लेते हो
मुझे बिका कहकर अपनी भड़ास।
तुम्हारी तरह मैं भी नौकरी करता हूँ।
मुझे बेचना है हर भाव और करना है उसका व्यापार।
मेरी कलम बिकी नहीं है मगर दब गई है
मालिक के मुनाफे का भारी बोझ है।
मुझे बेचना है हर भाव और करना है उसका व्यापार।
मेरी कलम बिकी नहीं है मगर दब गई है
मालिक के मुनाफे का भारी बोझ है।
अब हर खबर का सच वही है जो धंधा चमकाती है
जिसे तुम देखते और पढ़ते हो मजे लेकर।
तुमने भी तो बदल दिया है न अब खबरों का
संसार। अकेला मैं ही दोषी नहीं हूँ।
जिसे तुम देखते और पढ़ते हो मजे लेकर।
तुमने भी तो बदल दिया है न अब खबरों का
संसार। अकेला मैं ही दोषी नहीं हूँ।
तुम्हें पता है जब मर जाती है
कोई जनहित और सरोकार से जुडी मेरी खबर,
कितनी मौत मरता हूँ।
जब संपादक कहता है इसे हटा दो पन्ने से अपने यहाँ चल नहीं पाएगी।
कोई जनहित और सरोकार से जुडी मेरी खबर,
कितनी मौत मरता हूँ।
जब संपादक कहता है इसे हटा दो पन्ने से अपने यहाँ चल नहीं पाएगी।
तब मेरी निष्ठा का बलात्कार होता है,
उस वक्त जब सरेआम कोई मुद्दा मुर्दा होता है
मेरी आत्मा में गुनाह का एक और बोझ बढ़ता है।
हाँ यहाँ भी धंधेबाज बैठे हैं
उन्हें तुम्हारा वही दर्द दिखता है जो बिक सके।
उस वक्त जब सरेआम कोई मुद्दा मुर्दा होता है
मेरी आत्मा में गुनाह का एक और बोझ बढ़ता है।
हाँ यहाँ भी धंधेबाज बैठे हैं
उन्हें तुम्हारा वही दर्द दिखता है जो बिक सके।
तुम्हें समझने में वक्त लगेगा के चंद पैसों में घर चलाना,
अम्मा-बाबू और बीवी-बच्चों की ख्वाहिशों को मारकर
खुद को जिंदा रखना आसान नहीं होता।
अम्मा-बाबू और बीवी-बच्चों की ख्वाहिशों को मारकर
खुद को जिंदा रखना आसान नहीं होता।
फिर भी लड़ता हूँ हर रोज
जमीर को जिंदा रखने के लिए करता हूँ समझौते,
बदलता हूँ नौकरियां।
भटकता हूँ दर-बदर
उस एक ठिकाने के लिए
जहाँ जिंदा रहे हर खबर।
जमीर को जिंदा रखने के लिए करता हूँ समझौते,
बदलता हूँ नौकरियां।
भटकता हूँ दर-बदर
उस एक ठिकाने के लिए
जहाँ जिंदा रहे हर खबर।
पत्रकारिता से नौकरी हो चली धारा के उलट बहना आसान नहीं होता,
शहर-दर-शहर बदलना आसान नहीं होता,
आसान नहीं होता जब ऑफिस में चापलूस संपादक का कोई पिट्ठू उन्नति पाता है।
और मेरा बेटा एक कैडबरी की महंगी चाकलेट को ललाता है।
शहर-दर-शहर बदलना आसान नहीं होता,
आसान नहीं होता जब ऑफिस में चापलूस संपादक का कोई पिट्ठू उन्नति पाता है।
और मेरा बेटा एक कैडबरी की महंगी चाकलेट को ललाता है।
धंधे में रहकर उसकी गंदगी को साफ़ करना इतना सरल नहीं है
जितना इससे दूर रहकर आरोप लगाना।
ये चमकती दुनिया वैसी नहीं है जैसा तुम समझते हो।
जितना इससे दूर रहकर आरोप लगाना।
ये चमकती दुनिया वैसी नहीं है जैसा तुम समझते हो।
हम भी सेवा करने के लिए कमियां और मुद्दे उठाने आये थे,
अब मरते मुद्दों में दबी चीखें और बढ़ते मुनाफे से लद गया है जी।
ऐसे में ही जब कचोटता है मन तो मरता है खबरनवीश।
अब मरते मुद्दों में दबी चीखें और बढ़ते मुनाफे से लद गया है जी।
ऐसे में ही जब कचोटता है मन तो मरता है खबरनवीश।
हाँ मैं बेचता हूँ सब कुछ,
मगर खुद बिका नहीं हूँ
अभी जारी है जद्दोजेहद जमीर जिंदा रखने की।
जिस दिन बिक जाउंगा पूरा
तुम देख भी नहीं पाओगे हर अनदेखा सच,
जिसे मैंने जिंदा रखा है अब तक।
---
आवारा
मगर खुद बिका नहीं हूँ
अभी जारी है जद्दोजेहद जमीर जिंदा रखने की।
जिस दिन बिक जाउंगा पूरा
तुम देख भी नहीं पाओगे हर अनदेखा सच,
जिसे मैंने जिंदा रखा है अब तक।
---
आवारा
0 Comments