मेरी आवारगी

मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।

तस्वीर साभार : गूगल   

विभत्स हूँ... विभोर हूँ...
मैं समाधि में ही चूर हूँ...
मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।
घनघोर अँधेरा ओढ़ के...
मैं जन जीवन से दूर हूँ...
श्मशान में हूँ नाचता...
मैं मृत्यु का ग़ुरूर हूँ...
मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।
साम – दाम तुम्हीं रखो...
मैं दंड में सम्पूर्ण हूँ...
मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।
चीर आया चरम में...
मार आया “मैं” को मैं...
“मैं” , “मैं” नहीं...
”मैं” भय नहीं...
मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।
जो सिर्फ तू है सोचता...
केवल वो मैं नहीं...
मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।
मैं काल का कपाल हूँ...
मैं मूल की चिंघाड़ हूँ...
मैं मग्न...मैं चिर मग्न हूँ...
मैं एकांत में उजाड़ हूँ...
मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।
मैं आग हूँ...
मैं राख हूँ...
मैं पवित्र राष हूँ...
मैं पंख हूँ...
मैं श्वाश हूँ...
मैं ही हाड़-माँस हूँ...
मैं ही आदि-अनन्त हूँ...
मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।
मुझमें कोई छल नहीं...
तेरा कोई कल नहीं...
मौत के ही गर्भ में...
ज़िंदगी के पास हूँ...                       
अंधकार का आकार हूँ...
प्रकाश का मैं प्रकार हूँ...
मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।
मैं कल नहीं मैं काल हूँ...
वैकुण्ठ या पाताल नहीं...
मैं मोक्ष का भी सार हूँ...    
मैं पवित्र रोष हूँ...
मैं ही तो अघोर हूँ...
मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ। मैं शिव हूँ।
#ॐ नमः शिवाय#जय बाबा महाकाल

आप सबको महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं। शिव आपको भक्ति दें।


नोटः यह रचना सोशल मीडिया से ली गई है। पाठकों से विनम्र अनुरोध है। इस रचना के रचनाकार या स्रोत का पता हो तो कृपया कमेंट बॉक्स में अधिकृत जानकारी साझा करें। क्योंकि इसके बारे में और जानकारी इकट्ठा करनी है। धन्यवाद।

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1 Comments

triptyshukla said…
यह आदि गुरु शंकराचार्य की रचना है। जब उनकी प्रथम बार अपने गुरु से भेंट हुई तो उन्होंने अपना परिचय इसी तरह दिया था। मूल रचना संस्कृत में थी। अनुवादक की जानकारी नहीं है। यह परिचय निर्वाण षटकम् नाम से प्रसिद्ध हुआ।