मेरी आवारगी

लक्ष्य ढूंढ़ते हैं वे जिनको वर्तमान से प्यार नहीं है

ये किसी परिचय के मोहताज नहीं 
ये खूबसूरती ही है शब्दों की जो आपको हमेशा तरोताजा कर देती है. मुझे प्रशून दा की इस कविता में कुछ ऐसा ही जादू महसूस होता है. आज सुबह यह कविता उनसे ही वाया एनडीटीवी इंडिया सुनने को मिली. एंकर अभिज्ञान प्रकाश से एक विशेष बतकही कार्यक्रम के दौरान उन्होंने इसे सुनाया. मुझे जो महसूस हुआ जरूरी नहीं कि आपको हो, मगर कुछ तो है जो भावप्रधान मनुष्य के हृदंय में हिलोर जरूर पैदा करेगा . आभार एनडीटीवी और साभार प्रशून जोशी पेश है पूरी कविता.


 






लक्ष्य ढूंढ़ते हैं वे जिनको वर्तमान से प्यार नहीं है
इस पल की गरिमा पर जिनका थोड़ा भी अधिकार नहीं है
इस क्षण की गोलाई देखो आसमान पर लुढ़क रही है

नारंगी तरुणाई देखो दूर क्षितिज पर बिखर रही है.
पक्ष ढूंढते हैं वे जिनको जीवन ये स्वीकार नहीं हैं
लक्ष्य ढूंढ़ते हैं वे जिनकोवर्तमान से प्यार नहीं है 

नाप-नाप के पीने वालों जीवन का अपमान न करना
पल-पल लेखा-जोखा वालों गणित पे यूँ अभिमान न करना
नपे-तुले वे ही हैं जिनकी बाहों में संसार नहीं है
लक्ष्य ढूंढ़ते हैं वे जिनको वर्तमान से प्यार नहीं है

ज़िंदा डूबे-डूबे रहते मृत शरीर तैरा करते हैं
उथले-उथले छप-छप करते, गोताखोर सुखी रहते हैं
स्वप्न वही जो नींद उडा दे, वरना उसमे धार नहीं है
लक्ष्य ढूंढ़ते हैं वे जिनको वर्तमान से प्यार नहीं है

कहाँ पहुँचने की जल्दी है नृत्य भरो इस खालीपन में
किसे दिखाना तुम ही हो बस गीत रचो इस घायल मन में
पी लो बरस रहा है अमृत ये सावन लाचार नहीं है
लक्ष्य ढूंढ़ते हैं वे जिनको वर्तमान से प्यार नहीं है

कहीं तुम्हारी चिंताओं की गठरी पूँजी ना बन जाए
कहीं तुम्हारे माथे का बल शकल का हिस्सा न बन जाए
जिस मन में उत्सव होता है वहाँ कभी भी हार नहीं है
लक्ष्य ढूंढ़ते हैं वे जिनको वर्तमान से प्यार नहीं है
                                        साभार : प्रशून जोशी

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