मेरी आवारगी

मेरे लहू का रंग तू

जय माँ  भारती


तेरी ही जुस्तजू है
मेरी आरजू भी तू है
रंगों में दौड़ता रंग तू
मेरे अंग तू, हर संग तू
मेरे हमनवां अजान तू
गीता-भागवत ही नहीं
बाईबल और क़ुरान तू
जब लेख सारे मिट गए
जो रटा रहा वो कलाम तू
कितने फागुन यूँ बीते हैं
सरगोशी और खामोशी से
तन जिसमें रंगता आया हूँ
उस इश्क का है मकाम तू
सजदा तेरा मेरी सरजमीं
कुर्बान तुझ पर यार सब
मेहर इतना करना मौला
जिस्म जल जाए तो क्या
तेरी मोहब्बत में आवारा
मेरा पोर-पोर जाए तौला

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