मेरी आवारगी

आल्हा-ऊदल की कहानी आशुतोष राणा की जुबानी

ये एक बहुत सुंदर काम है। जिन्होंने इसके पहले आल्हा नहीं सुना या उससे परिचित नहीं है। शायद वो इसे न समझ सकेंगे। लेकिन फिर वो इसका आनंद उठा सकते हैं क्योंकि यह हिंदी में है। 93.7 बिग एफएम और आशुतोष जी का आभार। उन्होंने 'धरोहर' के माध्यम से आल्हा-ऊदल को और सरल करने का प्रसंशनीय काम किया है।
 

यूँ तो बुंदेली में देशराज पटेरिया जी सहित कई अन्य लोक गायकों ने आल्हा गाया और सहेजा है। यू ट्यूब पर मछला हरण से लेकर पाथरीगढ़ की लड़ाई तक सारा आल्हाखण्ड बुंदेली में उपलब्ध है। जो बुंदेली जानते हैं वो तो वही सुनना पसंद करेंगे। सौभाग्य से मेरा ममियारा बुन्देलखण्ड और पैदाइश बघेलखण्ड है, तो बुंदेली व बघेली दोनों मेरे लिए मां-मौसी जैसी हैं। इसलिए इनका बराबर आनन्द उठा पाता हूँ। फिलहाल लिंक पर चटका लगाएं और आल्हा के हिंदी वर्जन का आनन्द लें। 


आशुतोष राणा जी ने एक शानदार प्रयास किया है। इसके लिए उनका धन्यवाद। बचपन से आल्हा सुनता रहा हूँ। आज यू ट्यूब के मार्फ़त हिंदी में सुनकर बड़ा अच्छा लग रहा है।  

आल्हा -ऊदल भारतवर्ष के बुंदेलखंड के महानतम योद्धा महापराक्रमी वीर थे। कहा जाता है आल्हा द्वापर युग के महाबली भीम के पौत्र बर्बरीक का अवतार हैं, और यह भी माना जाता है की आज भी अमर हैं। महाराज पृथ्वीराज चौहान के समकालीन महोबा के इन वीरों की कहानी आशुतोष राना की ज़ुबानी। आप सुनकर प्रतिक्रिया देंगे तो अपनी भारतीय धरोहर को सहेज अपने भारत वासियों को समर्पित करने के इस अकिंचन प्रयास को बल मिलेगा।

"बड़े लडैया महोबा बाले इनकी मार सही नै जाए। एक को मारे दुई मर जाए तीसरा ख़ौफ़ खाय मर जाए।"

जय हो ।  



नोटः यह चिट्ठा वाया आशुतोष राणा उनके फेसबुक वॉल से साभार है। इसमें दिए गए लिंक धरोहर नाम के  कार्यक्रम के हैं, जो 93.7 बिग एफएम पर इन दिनों प्रसारित हो रहा है। आल्हा-ऊदल की कहानी को बुंदेली से हिंदी में लाने के लिए 93.7 और आशुतोष जी का धन्यवाद।

Post a Comment

0 Comments