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बेटे का नाम तैमूर रखने पर सवाल लाजमी है : सचिन श्रीवास्तव

सचिन श्रीवास्तव 
तैमूर नाम रखा सैफ ने अपने बेटे का। मुझे उनका साहस रास आया। एक बर्बर नाम को अपने बेटे के साथ उम्र भर चिपकाने के लिए जिस साहस की दरकार होती है, वह सैफ ने दिखाया है। लेकिन इसके बावजूद सैफ से सवाल पूछा जाना चाहिए कि आखिर क्यों उन्होंने अपने बेटे का नाम तैमूर रखा? यह उनका निजी मसला नहीं है। यह दो कौमों के बीच की नफरत का भी मामला नहीं है। यह पूरी मानवता के खिलाफ आज तक के इतिहास में जो लोग हुए हैं, उनके प्रति नफरत का मामला है। उनका बेटा पैदा होते ही साथ सेलिब्रेटी स्टेटस पा चुका है और सैफ की अपील आम लोगों में है, तो उनकी जिम्मेदारी भी ज्यादा है।
14वीं सदी के जिस शासक से सैफ ने अपने बेटे का नाम जोड़ा है, वह प्रत्यक्ष रूस से दुनिया के अब तक के इतिहास के सबसे बर्बर और निष्ठुर शासकों में शुमार है। यह दीगर बात है कि कई अमरीकी राष्ट्रपतियों और अन्य तानाशाहों, लोकतांत्रिक शासकों ने भी छुपी हुई बर्बरता के कई कीर्तिमान बनाए हैं।
हिटलर की तरह तैमूर लंग किसी कौम से नफरत नहीं करता था, लेकिन अपनी जीत के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता था। तैमूर को इस्लाम से जोडऩा भी एक भयानक गलती है। आखिर तैमूर के पिता ने इस्लाम कबूल किया था। मूलत: तैमूर का उद्देश्य चंगेज खां और सिकंदर की तरह विश्व विजय का था। इसके लिए उसने इस्लाम का सहारा भी लिया। 1369 में समरकंद के मंगोल शासक की मौत के बाद समरकंद की गद्दी कब्जाने वाले तैमूर ने चंगेज खां की तर्ज पर ही अपनी सैनिक व्यवस्था कायम की थी। 1387 तक खुरासान, सीस्तान, अफगानिस्तान, फारस, अजरबैजान और कुर्दिस्तान जीतने के बाद  1393 में बगदाद से मेसोपोटामिया तक अपना साम्राज्य फैलाने वाला तैमूर भारत को जीतना चाहता था, लेकिन उसके अमीर और सरदार शुरुआत में इस हमले के लिए तैयार नहीं थे। तब तैमूर ने इस्लाम के प्रचार के लिए भारतीय मूर्तिपूजा के विध्वंस को अपना पवित्र ध्येय घोषित किया था। इस तरह इस्लाम का तैमूर ने महज इस्तेमाल किया, अपनी महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए।
नोटः यह सम्बंधित मुद्दे पर सचिन श्रीवास्तव जी की एक फौरी प्रतिक्रया है जिसे उनके फेसबुक वॉल से साभार यहाँ चस्पा किया गया है। इससे जुड़े किसी वाद-विवाद को मेरी आवारगी प्रोत्साहित नहीं करेगा।

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