मेरी आवारगी

स्मार्ट फोन के युग में ग्लोबल होती हिन्दी

फोटो साभार ; गूगल बाबा 
हिन्दी करोड़ों हिंदुस्तानियों की ही आवाज नहीं है, तकनीक के बदले दौर में वो देश की सीमाओं को लांघकर वैश्विक हो चली है. सूचना क्रांति के दौर में हिन्दी का स्वरूप लगातार बदल रहा है. उसके परिस्कृत और परिमार्जित होने के साथ उसके बदलाव पर भले ही बहस हो सकती है, लेकिन सूचना क्रांति ने उसकी पहुंच को ब्यापक बनाया है इससे इंकार नहीं किया जा सकता है. आज सूचनाओं की सबसे बड़ी और सर्वसुलभ खेप पहुंचाने वाला इंटरनेट स्मार्ट फोन के सहारे हर तीसरे हिंदुस्तानी के पास है. देश-दुनिया में निकलने वाले हजारों हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं के इतर अब लगभग सभी प्रमुख संचार एजेंसियों और अखबारों ने भी इंटरनेट में अपनी वेब साइटों के माध्यम से हिन्दी के प्रसार में महती भूमिका अदा की है. 

संचार तकनीक के बढ़ते युग में स्मार्ट फोन हर आयु और आय वर्ग के लोगों तक अपनी पहुंच बना चुका है, जिसके लिए अखबार, पत्र- पत्रिकाओं और सूचना एजेंसियों, न्यूज चैनलों, रेडियो, आकाशवाणी और एफएम सहित हर सूचना देने वाले तंत्र ने अपने-अपने न्यूज ऐप विकसित कर लिए हैं. आलम यह है कि नए-नए न्यूज ऐप और वेबसाइटों के खुलने का सिलसिला तेजी से बढ़ रहा है. इस क्षेत्र में जितना अधिक मनोरंजन और मीडिया क्षेत्र की नामचीन कंपनियां कूद रही हैं, उतने ही नए स्टार्ट-अप भी आ रहे हैं. कुछ नया और अलग करने की चाह में बड़ी तादाद में युवा वर्ग ने भी छोटे-छोटे गांवों को इंटरनेट में हिन्दी के माध्यम से आॅन लाइन कर दिया है. ऐसे उदाहरणों में चाहे बिहार में निकाला जाने वाला 'अप्पन समाचार' हो या ग्रामीण परिवेश पर केंद्रित 'गांव कनेक्शन' ये हिन्दी की व्यापकता को दिखाने वाले अहम पड़ाव हैं.

हिन्दी साहित्य, सिनेमा, मनोरंजन, विज्ञापन और शिक्षा के क्षेत्र में ही सिमटी हुई थी, लेकिन संचार क्रांति के दौर में अब वह ग्लोबल हो गई है. सोशल मीडिया पर कभी केवल अंग्रेजीदां लोगों का ही वर्चस्व था, लेकिन आज हिन्दी ने ट्वीटर से लेकर फेसबुक और गूगल तक अपनी ताकत साबित की है. यहां तक कि गूगल जैसे सर्च इंजन को भी हिन्दी माध्यम में उतारना पड़ा है. सोशल मीडिया और इंटरनेट सहित मोबाइल ऐप के सहारे हिन्दी अब विश्व पटल पर बढ़ रही है. आज अमेरिका सहित दुनियाभर के बड़े विश्वविद्यालयों में हिन्दी के बेहतर पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं. लगभग पेशेवर पाठ्यक्रमों की शिक्षा अब हिन्दी में देने की पहल हो रही है. हालांकि इंटरनेट के रास्ते से हिन्दी के विस्तार में उसके अपभ्रंश होने, समृद्ध होने या वास्तविक स्वरूप में बचे रहने का बड़ा प्रश्न खड़ा है, क्योंकि संस्कृतनिष्ठ हिन्दी या शुद्ध हिन्दी की जगह इंटरनेट पर सबको समझ आने वाली सरल हिन्दी और चलताऊ शब्दशैली को ही तरजीह दी जा रही है. बावजूद इसके हिन्दी सब कुछ अपने में समाहित कर तकनीक की ताल से ताल मिलाकर आगे बढ़ रही है. 

- दीपक गौतम 

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