मेरी आवारगी

जीत में सब साथ होते हैं...

वास्तव में जीत का पैमाना हार के बाद ही तय होता है। कहते हैं कि जो हारा नहीं उसे जीत कि लालसा नहीं हो सकती है एक पुरानी कहावत है- असफलता ही सफलता की कुंजी है। खैर मैं बात कर रहा हूँ उस अदभुत विजय की जो भारत को ओलंपिक में मिली है। पहली बार तीन पदकों का मिलना सचमुच गौरव की बात है। अभिनव को स्वर्ण मिला चारो तरफ़ से रुपयों की बारिश हो गई। सुशील नें कांस्य जीता तो अकादमी खोलने की घोषणा हो गई ,काश ये पैसा जीतने के बाद नहीं जीतने के लिए खर्च किया जाता तो कुछ और पदकों को पाकर हम इतरा सकते थे। जितना पैसा आंख मूंदकर क्रिकेटरों पर बहाया जाता है यदि कुछ रहमो करम दूसरे खेलों पर भी हो जाए तो भारत को तीन पदकों से संतोष न करना पड़े। हांकी में कभी नंबर वन थे सपना सा लगता है आज युवा तो क्रिकेट तक ही सिकुड़कर रह गए हैं। आभिनव कैसे ओलंपिक तक पहुंचे सारा देश जनता है मगर आज उनकी जीत का दंभ हम सारे भारतवासी भर रहे हैं। खेलों की दशा तो ये है की २०१० में होने वाले कामन वेल्थ खेलों के लिए खिलाड़ी नहीं ग्राउंड दिल्ली में तैयार हो रहा है।

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2 Comments

bahut sahi guru ....hai to paatte ki baat lekin kaun karega...sabki kano par ju tavi rengte hai jab jit ho jati hai...nahi to kaisa khel aur kaisa padak.....
अवाम said…
wah bhai kya likha hai jeet me sab sath hote hai hare hua ko kaun puchata hai