मेरे पढने वालों को मेरा नमस्कार
दोस्तों मेरा ब्लॉग आपने पढ़ा होगा तो आप जानते होंगे कि इसके शीर्षक बदलते रहे हैं, इसको लेकर मैं सोच में था। लेकिन आज मैंने इसका नामकरण संस्कार विधिवत पूरा कर दिया है । मुझे आशा है कि मेरे ब्लॉग के नाम के अनुरूप में कुछ हटकर आप लोंगो को दे सकूंगा। मेरा ब्लॉग का सफरनामा कुछ इस तरह से है कि इन घुमावदार गलियों में हम भी घूमते- घूमते आ ही गए। ब्लागिंग के इस साँप ने मुझे भी डस ही लिया , मुआ इसका ज़हर ऐंसा चढा कि उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है। इसका ज़हर जैसे -जैसे मेरी रगों में बहने लगा है मुझे इस ज़हर की आदत सी हो गई है कुल मिलकर ये कहें कि बड़ा ही जहरीला नशा है ब्लागिंग का तो अतिशयोक्ति नहीं होगी जिस तरह ज़हर फैलता है ठीक उसी तरह ये नेट कि दुनिया में फैलता जा रहा है दोस्तों आप ने इस पोस्ट का शीर्षक पढ़ा होगा तो ख्याल अवश्य आया होगा कि वक्त और परिंदा कहाँ गया । बात ये है दोस्तों कि मुझे अक्सर एक गीत कि लाइनें याद आती है वो कुछ इस तरह हैं - वक्त का ये परिंदा रुका है कहाँ
चार पैसे कमाने मैं आया शहर
गाँव मेरा मुझे याद आया मगर
स्कुल से घर जब लौटता था मैं
मुझको खाना खिलाती थी माँ ....
ये पंक्तियाँ तो अधूरी हैं मगर इनसे मेरे कहने का अभिप्राय यह है की वक्त ठहरा नहीं है और न ही ठहरेगा ये जरूरी नहीं की कल आपके साथ हो बस यादें- यादें- यादें और यादें हैं जी हाँ लेकिन जनाब यादें कड़वी हों तो दुख देती हैं और मीठी हों तो वो शुखद आनंद प्राप्त होता है कि पूंछिये मत. आपका भी जीवन का खट्टा-मीठा अनुभव होगा यादें उजली हों धुंधली हों याद तो आती ही हैं लेकिन समय चक्र रुकता नही है इसलिए बस परिंदे कि तरह उड़ते जाओ.
दोस्तों मेरा ब्लॉग आपने पढ़ा होगा तो आप जानते होंगे कि इसके शीर्षक बदलते रहे हैं, इसको लेकर मैं सोच में था। लेकिन आज मैंने इसका नामकरण संस्कार विधिवत पूरा कर दिया है । मुझे आशा है कि मेरे ब्लॉग के नाम के अनुरूप में कुछ हटकर आप लोंगो को दे सकूंगा। मेरा ब्लॉग का सफरनामा कुछ इस तरह से है कि इन घुमावदार गलियों में हम भी घूमते- घूमते आ ही गए। ब्लागिंग के इस साँप ने मुझे भी डस ही लिया , मुआ इसका ज़हर ऐंसा चढा कि उतरने का नाम ही नहीं ले रहा है। इसका ज़हर जैसे -जैसे मेरी रगों में बहने लगा है मुझे इस ज़हर की आदत सी हो गई है कुल मिलकर ये कहें कि बड़ा ही जहरीला नशा है ब्लागिंग का तो अतिशयोक्ति नहीं होगी जिस तरह ज़हर फैलता है ठीक उसी तरह ये नेट कि दुनिया में फैलता जा रहा है दोस्तों आप ने इस पोस्ट का शीर्षक पढ़ा होगा तो ख्याल अवश्य आया होगा कि वक्त और परिंदा कहाँ गया । बात ये है दोस्तों कि मुझे अक्सर एक गीत कि लाइनें याद आती है वो कुछ इस तरह हैं - वक्त का ये परिंदा रुका है कहाँ
चार पैसे कमाने मैं आया शहर
गाँव मेरा मुझे याद आया मगर
स्कुल से घर जब लौटता था मैं
मुझको खाना खिलाती थी माँ ....
ये पंक्तियाँ तो अधूरी हैं मगर इनसे मेरे कहने का अभिप्राय यह है की वक्त ठहरा नहीं है और न ही ठहरेगा ये जरूरी नहीं की कल आपके साथ हो बस यादें- यादें- यादें और यादें हैं जी हाँ लेकिन जनाब यादें कड़वी हों तो दुख देती हैं और मीठी हों तो वो शुखद आनंद प्राप्त होता है कि पूंछिये मत. आपका भी जीवन का खट्टा-मीठा अनुभव होगा यादें उजली हों धुंधली हों याद तो आती ही हैं लेकिन समय चक्र रुकता नही है इसलिए बस परिंदे कि तरह उड़ते जाओ.
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