मेरी आवारगी

आधुनिक नारी पुरुषों से अधिक कर्मठ हैं

फ़ोटो : साभार गूगल बाबा

आज की नारी किसी भी क्षेत्र में पुरुषों से कम नहीं है। वह पेशेवर और व्यक्तिगत हर तरह की जिम्मेदारी को एक साथ बखूबी निभाते हुए पुरुषों को पीछे छोड़ रही है। जितने बेहतर ढंग से आज महिलाएं घर-परिवार, देश-समाज और अपने कामकाज को संभाल रही हैं, वह पुरुषों के लिए आज भी दूर की कौड़ी है। 
     आज के आधुनिक युग में महिलाएं हर क्षेत्र में अपनी कर्मठता को साबित कर रही हैं। आज की नारी राजनीति, रक्षा, खेल, संगीत, कला, समाज सेवा, नारी सशक्तिकरण और अन्य विभिन्न क्षेत्रों में भी जिस तरह से अपना योगदान दे रही है, यह इस बात का सबसे सशक्त उदाहरण है कि नारियों की स्थिति समाज में पहले से और अधिक मजबूत हुई है। वह अब न केवल अपने अधिकारों के लिए लड़ रही हैं, बल्कि देश और समाज को आगे बढ़ाने में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। 
    भारत जैसे बहुसंस्कृति और विविधता वाले देश में भी नारी (प्रतिभा पाटिल पहली भारतीय महिला राष्ट्रपति ) ने राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च संवैधानिक पद को संभालकर यह दिखा दिया है कि वह केवल घर चलाने में ही नहीं, बल्कि देश चलाने में भी सक्षम है। आज की नारी की कर्मठता के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण भारतीय समाज में तो एक से बढ़कर एक हैं। अभी हाल ही में देश की दो बेटियों दीपा मलिक और मानसी जोशी ने अपने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन से पैरालंपिक खेल जगत में भारत का मान पूरे विश्व में बढ़ाया है। इन दिव्यांग बेटियों ने अपनी मेहनत और लगन से यह साबित किया है कि आज की नारी यदि ठान ले तो वह अपने कर्मयोग से पूरी दुनिया को जीत सकती है। अभी हाल ही में विश्व महिला मुक्केबाजी में मंजू रानी ने भी देश के लिए रजत पदक हासिल किया है, जो हमारे लिए सौभाग्य की बात है। पहले  पहलवानी हो या मुक्केबाजी इन खेल क्षेत्रों पर केवल पुरुषों का एकाधिकार था, लेकिन अपनी कर्मठता और कठिन परिश्रम के दम पर मैरीकॉम, गीता फोगाट और बबीता फोगाट जैसी महिला खिलाड़ियों ने इस धारणा को आखिरकार ध्वस्त कर दिया। आज हालात यह हैं कि महिला सशक्तिकरण के नाम पर पूरे देशभर में एक नारा जोर से गूंज रहा है कि "म्हारी छोरियां छोरों से कम हैं क्या"। यह केवल एक फिल्मी डायलॉग या कथन नहीं है, बल्कि नारी के सशक्तिकरण और कर्मठता की छाप है, जो आज पूरे भारतीय समाज में देखने को मिल रही है। अब धीरे-धीरे महिलाएं पुरुषों के एकाधिकार वाले ऐसे हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम कर रही हैं। 
          आज महिलाएं अपनी कर्मठता को कदम-कदम पर सिद्ध कर रही हैं। ताजा उदाहरणों को देखें तो इस धारणा को और अधिक बल मिलता है। देश की बेटियों ने ऐसे-ऐसे कीर्तिमान गढ़े हैं, जो बिना कर्मयोग के संभव नहीं है। मध्यप्रदेश के रीवा जिले की बेटी अवनि चतुर्वेदी मिग-21 को उड़ाकर फाइटर प्लेन उड़ाने वाली भारत की पहली महिला पायलट बनी हैं। यह सफलता हासिल करने में देश की महिलाओं को भले ही आजादी के बाद के लगभग 7 दशक लग हों, लेकिन इस परिस्थिति पर एक कहावत पूरी तरह चरितार्थ होती है कि "देर आए दुरुस्त आए"। 
     19 वीं और  20 वीं सदी में भारत ही नहीं पूरे विश्व में नारियों की स्थिति मजबूत हुई है। आज महिलाएं केवल अपने व्यक्तिगत ही नहीं, बल्कि देश और समाज से जुड़े फैसले भी ले रही हैं। वह विभिन्न विश्व स्तरीय संस्थाओं के संवैधानिक पदों पर काबिज होकर अपने दायित्यों का निर्वहन कर रही हैं। चौथी बार बंग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं शेख हसीना हों, ब्रिटिश इतिहास में सबसे ज्‍यादा समय तक राज करने वाली महारानी एलिजाबेथ द्वितीय हों या जर्मनी के आर्थिक सुधारों को बल देने और वहाँ की पहली महिला चांसलर बनने का गौरव पाने वाली एंजला मर्केल। यह तो चंद उदाहरण मात्र हैं, जिन्होंने विश्व पटल पर अपने कर्मयोग का लोहा मनवाया है। विश्व पटल पर वंगारी मथाई, बेनजीर भुट्टो, इंदिरा गांधी, थेरेसा मे और चन्द्रिका कुमारसंगा सहित ऐसे और कई महिलाओं के नाम हैं, जो विश्व राजनीति में कर्मयोग का सशक्त हस्ताक्षर हैं। इन महिलाओं ने अपनी काबिलियत का लोहा पूरी दुनिया में मनवाया है। इनकी प्रतिभा और कर्मयोग के सामने विश्व नतमस्तक रहा है। 
      विशेष रूप से यदि भारत की बात करें, तो महिलाओं में बढ़ती साक्षरता, शिक्षा के महत्व और सामाजिक चेतना सहित अन्य कारकों ने पितृ सत्तात्मक सत्ता के बावजूद महिलाओं की स्थिति को देश में क्रमशः मजबूत किया है। 20 वीं सदी के आते-आते भारतीय नारी ने अपनी पहुंच हर क्षेत्र में बना ली है। आज ऐसा कोई क्षेत्र नहीं हैं, जहां उनकी प्रबल और प्रचंड उपस्थिति न हो। कथित रूप से पुरुषों का क्षेत्र माने जाने वाले पर्वतारोहण में भी देश की बेटियों ने रिकॉर्ड कायम कर यह सिद्ध कर दिया है कि यदि महिलाएं ठान लें तो वह अपने हौसलों के फौलाद से हर एवरेस्ट फतेह कर सकती हैं। आंधप्रदेश की बेटी पूर्णा ने महज 13 वर्ष में  एवरेस्ट फतेह कर सबसे कम उम्र की लड़की पर्वतारोही होने  का रिकॉर्ड बनाया, वहीं इसी वर्ष मध्य प्रदेश के सीहोर जिले की किसान की 24 वर्षीय बेटी मेघा परमार ने माउंट एवरेस्ट फतेह कर यह साबित कर दिया है कि महिलाओं कर्मयोग किसी भी मामले में पुरुषों से कम नहीं है। 
-©दीपक गौतम

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