

ये मंजर हर देशवासी को नागवार गुजरेगा। देश की शान्ति और सुराछा के जिम्मेदार लोग भी
घटनाओं पर रटे- रटाये बयां देते नजर आ जाते है बापू भी राजनीति का ये हाल देखकर दुखी होते उन्होंने जिस भारत की परिकल्पना की थी वो कहाँ खो गया है ये सोचने की परम आवश्यकता है देश के नीत निर्धारकों को इस बात पर गौर करना चाहिए। माना कि वक्त की फिजा बदल गई है मगर बदलाव के साथ आदर्शों का ख़याल रखा जाना चाहिए । अपनी इन पंक्तियों से खत्म करना चाहूँगा ...
माना की फिजा बदली है
पर वो वक्त भी आएगा
आज आग है चरो तरफ़ तो क्या हुआ
जायेगी ये घनी बदली पानी भी बरस जाएगा
पानी भी बरस जाएगा
ए मुसाफिर तू हैरान क्यों है
ए मुसाफिर तू हैरान क्यों है
बदलती इस फिजा में आज इतना नादान क्यों है
सोच की फ़िर कोई गाँधी की तरह आएगा
सोते हुओं को फ़िर नींद से उठाएगा
तू ही है जो अब नई राह बनाएगा
तू ही है जो अब नई राह बनाएगा
तू ही है बस तू ही है जो कुछ नया- कुछ नया और बेहतर कर पाएगा
बापू ये पंक्ति अक्सर दोहराते थे
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न त्वहं कामये राज्यम् , न स्वर्गं न पुनर्भवं, कामये दुख्ताप्तानाम, केवलम प्राणीनामआर्तनाशनं
अर्थात न तो मुझे किसी साम्राज्य को पाने की इच्छा है न स्वर्ग को पाने की लालशा है न जीवन -मरण से मुक्त होने की ही कामना है मेरी भगवन से यही पाने की कामना है की इस संसार के सभी दुखी प्राणियों के दुःख का नाश हो जाए
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