मेरी आवारगी

एक कविता हिन्दी के सम्मान पर हमने भी सुनाई

यह एक यादगार लम्हा था मेरे मित्रों और मेरे लिए भी जब हम लोग रविवार को मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति द्वारा आयोजित सेमीनार में सदी के महान पत्रकारों प्रभाश जोशी, राहुल देव और हिन्दी के विद्वानों विजय बहादुर सिंह, रमेश चंद्र शाह, ओम प्रकाश, मृदुला सिन्हा, डॉ किशोर वासवानी तथा हमारे कुलपति अच्युतानन्द मिश्र के बीच उपस्थित थे। हम लोगों को भी युवाओं की ओर से बात रखने का मौका मिला। उस पर हमने जो एक बात राखी की संगोष्ठी तो बहुत होती हैं मगर न निष्कर्ष निकलता है न ही अमल होता है।




एक कविता हिन्दी भाषा के सम्मान पर हमने भी सुनाई 
जहाँ सब हिन्दी का यशगान और कर रहे थे सम्मान
माना कि उम्र चोटी और अनुभव नहीं रहे 
पर आके यहाँ संगोष्ठियों से पाले खूब पड़े।
चिंतित तो सब हैं संगोष्ठी के विषय पर 
विचार भी ब्यक्त हैं होते पर,
निष्कर्ष निकलकर उस पर कभी अमल नहीं होते।
हमसे भी आज देखा न गया मात्रभाषा पर
 विचारों की उमड़ती आंधियां।
बस विचारों का ही गौरव 
याद आया मातृभाषा का वो सौरव।
पता नहीं ये धुंद कब हटेगी 
अंग्रेजी के बीच में हिन्दी कब उठेगी।
इस हिन्दी राष्ट्र में एकत्र हुए हैं 
हिन्दी को बतलाने को कि तू अब नहीं बची है,
हो रही है तेरी पुर्नस्थापना ॥ 
हम ही हम कहते रहेंगे बस विचरों में ही बहते रहेंगे।
एक हिन्दी दिवस आएगा तो जागेगा मातृभाषा का प्रेम,
 तब हिन्दी के स्वजन हिन्दी कि करने लगेंगे
आराधना हिन्दी विचारों मे हिन्दी के लिए प्रार्थना। 
 एक लम्बी राह से दूर तलक जाना है
हर हाल में जो चाहिए बस वही बस वही पाना है ॥
जिन्दगी एक दौड़ है लम्बी 
क्या फर्क पड़ता है आवारा सड़क अंग्रेजी हो या हिन्दी॥

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1 Comments

sujeet said…
sahi likha he kaun jhmele me pade bat vikas aur ange nikalne ki hai