एक कविता हिन्दी भाषा के सम्मान पर हमने भी सुनाई
जहाँ सब हिन्दी का यशगान और कर रहे थे सम्मान
माना कि उम्र चोटी और अनुभव नहीं रहे
पर आके यहाँ संगोष्ठियों से पाले खूब पड़े।
चिंतित तो सब हैं संगोष्ठी के विषय पर
विचार भी ब्यक्त हैं होते पर,
निष्कर्ष निकलकर उस पर कभी अमल नहीं होते।
हमसे भी आज देखा न गया मात्रभाषा पर
विचारों की उमड़ती आंधियां।
बस विचारों का ही गौरव
याद आया मातृभाषा का वो सौरव।
पता नहीं ये धुंद कब हटेगी
अंग्रेजी के बीच में हिन्दी कब उठेगी।
इस हिन्दी राष्ट्र में एकत्र हुए हैं
हिन्दी को बतलाने को कि तू अब नहीं बची है,
हो रही है तेरी पुर्नस्थापना ॥
हम ही हम कहते रहेंगे बस विचरों में ही बहते रहेंगे।
एक हिन्दी दिवस आएगा तो जागेगा मातृभाषा का प्रेम,
तब हिन्दी के स्वजन हिन्दी कि करने लगेंगे
आराधना हिन्दी विचारों मे हिन्दी के लिए प्रार्थना।
एक लम्बी राह से दूर तलक जाना है
हर हाल में जो चाहिए बस वही बस वही पाना है ॥
जिन्दगी एक दौड़ है लम्बी
क्या फर्क पड़ता है आवारा सड़क अंग्रेजी हो या हिन्दी॥
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