सोचता हूँ जहाँ हर ओर आग भड़क रही है वहां थोडी ठंडक दे सकूँ तो सार्थक विचार होंगे। प्रेम चाहे जिस रूप में मिले उसका कोई दूसरा पर्याय नहीं है देशप्रेम, मातृप्रेम, जीवन से प्रेम, रिश्तों का प्रेम हर हाल में ब्यक्ति को अपने नजदीक ले जाता है। प्रेम सृजन करता है जीवन को रचनात्मक बना देता है उसी प्रेम पर प्रेम भरी एक रचना लिखने का प्रयास कर रहा हूँ।
तेरा अक्श नजर आता है
मुझे जीवन की गहराई में
अब तो नजर भी नहीं आता
अब तो नजर भी नहीं आता
मैं मेरी परछाईं में ..
तू रूह में घुल गई है,
तू रूह में घुल गई है,
जिस्म के हर जर्रे में
तू इस कदर समाई है
मेरा शाया जो साथ होता है
तो लगे कि तेरी परछाईं है
हवा मे तेरी नमी महसूस करता हूँ
बिन तेरे यूँ दूर होके तुझसे
बिन तेरे यूँ दूर होके तुझसे
तेरी तपिश मे जलता हूँ
ये जीना भी कोई जीना है
ये जीना भी कोई जीना है
जहाँ हर पल तेरी कमी
महसूस करता हूँ
तेरे प्यार मे ख़ुद को
मिटाना चाहता हूँ ,
मेरा क्या पागल हूँ
तुझे भी पागल बनाना चाहता हूँ
अश्कों से अब और कहाँ तक कहूँ
अश्कों से अब और कहाँ तक कहूँ
कि हाँ दूर होकर भी तुझसे
दिल से दीवाली मानना चाहता हूँ
तू बस गाँव नहीं है मेरी सरजमीं
कोई जमीन का टुकड़ा भी नहीं
तुम अरमानों की राख और
पहली मोहब्बत का आइना हो
बचपन से जवानी तक का किस्सा
हर पल बदलती दुनिया में
जो नहीं बदले अब तक
गाँव के उन लगोटियों का
तू ही तो है बस एक चेहरा
तू खाकसार भी अपनी
और जमीं मेरे सपनों की
तुझसे अलग होकर
न जाने फिर यूँ ज़रा सी
आँख बेरहम आवारा
फिर डबडबा आई है।
4 Comments
regards
शुभकामनायें.
एक अनुरोध है कि 'अक्श' और 'शाये' को सुधार लें तो ठीक रहेगा.