मेरी आवारगी

ऑरकुट के बहाने यादों की बारात

भोपाल का हबीबगंज स्टेशन, 2008 की एक सर्द रात तकरीबन 1 बजे 

कों खां याद आ रिया हे या नई... माकड़ा जे भोपाल की फोटू हे खां। सुजीत पाकुर वाले  का जन्म दिन मनाने निकले थे जब। इस तस्वीर में दिख रहे चेहरे जिंदगी के उस मुकाम पर मिले लोग हैं, जब हम पेशेवर होने निकले थे। अब तक जिए गए कुछ बेहतरीन दिनों में से एक वो दिन जब भी याद आते हैं, दिल में कुछ गीला सा महसूस होता है और उन दिनों की जुदाई में आंखें नम हो जाती हैं। समय कभी ठहरता नहीं किसी के लिए। आॅरकुट उन दिनों चलने वाली गूगल की वो सोशल सेवा थी जिसने हमें अपने सीनियर्स से लेकर पुराने दोस्तों तक सबको जोड़ रखा था। उसकी एक सुविधा तो अब तक फेसबुक और बाकी सोशल साइट्स पर भी नहीं है, अपनी प्रोफाइल विजिट करने वाले लोगों की लिस्ट को देख पाना।
आॅरकुट के सहारे माखनलाल विश्वविद्यालय में जिया वक्त लगभग सबने कुछ इस तरह कैद किया था, कि उसके खत्म होने की घोषणा होते ही तस्वीरों में कैद वो याद भरे पल चुराने के लिए सबने आॅरकुट का रुख किया होगा। अपन ने साल भर पहले ही कुछ जरूरी यादें अहतियातन उससे उठाकर लैपटॉप में कैद कर ली थीं, उन्हीं में से एक ये तस्वीर हाल के दिनों में मिली।
ये उस वक्त की याद है जब अपने परम प्रिय सुजीत बाबू का जन्म दिन महाविद्यालय से रात 11 बजे लौटने के बाद अचानक प्लान किया गया। मैं, प्रशांत गोरखपुरिया, पांडे जी, आदरणीय नेता जी, मनोज भाई और बृजेश, सुशील सहित कुछ और जूनियर्स के साथ पुलिया के पार रचना नगर भोपाल के उस हास्टल में जमावड़ा लगाया गया। केक की व्यवस्था करने के बाद जब मैं, प्रशांत और नेता जी हॉस्टल पहुंचे तो सुजीत अपने 17 इंच के टीवी पर घुसा कोई स्पोर्टस चैनल देख रहा था। यूं तो वो हमारे इंतजार में था कि सब आएं और कुछ धमाचौकड़ी हो, लेकिन बोला कि जाओ बे तुम लोग नींद खराब कर रहे हो मेरी, कल चौरे सर की क्लास सुबह 7 बजे से ही है। तुम लोगों का क्या आंख मलते नौ बजे पहुंचोगे डिपार्टमेंट।
हम सब में से मैं तो बहुत अलाल था, सुबह की क्लास तो जान ही लेती थी भाई। मगर फिर भी महीने में 15 से 20 दिन तो चला ही जाता था। बहरहाल सुजीत वो प्राणी ठहरे, जो सुबह नियमित उठते, योगा करते और फिर नहाधोकर 7 बजे कक्षा में चिपक जाते थे। रात को 11 बजे सब काम निपटाकर उन्हें सोना होता था। अपन ठहरे आवारा, रात 11 बजे तो अपनी शाम जवां होती थी। फिर प्रशांत और मन्नू भाई के साथ प्रशांत के 10 बाई 10 के दड़बेनुमा कमरे में दुनिया भर की गप्प हांकते। जब घड़ी का कांटा 12 के ऊपर जाता तो 7 नंबर के पास प्रगति पेट्रोल पंप में गर्म दूध या चाय पीने की योजना बनती। रात 3 बजे तक आवारागर्दी होती, भोपाल के सड़कों की खाक छानते फिरते, कभी ज्योति टॉकीज चौराहा, तो कभी बोगदा पुल तो कभी पुराना भोपाल नापा जाता।
खैर वो किस्सा फिर कभी हम सुजितवा के जन्म दिन पर थे, आखिरकार घड़ी ने 10 जनवरी 2008 को 12 बजाए और सुजीत बाबू का जन्म दिन शुरू हो गया। केक कटा हैप्पी बर्थडे टू यू वाला गाना भी हुआ और फिर निकल पड़े सुजितवा से ट्रीट के नाम पर शहर की खाक छानने। रचना नगर से गौतम नगर होते हुए बड़े पुल के नीचे से सीधा हबीबगंज स्टेशन पर जमावड़ा लगाया गया। वहां फूड प्लाजा पर और स्टेशन के अंदर जो मिला खाया-खुदड़ा गया, रास्तेभर जमकर फोटो सेशन भी हुआ।
अफसोस उनमें से ये एक फोटो ही मेरे पास है, बाकी के फोटो न होने का दुख है। सुजितवा हर वक्त कहता रहा अबे एक बज गया, अबे दो बज गया, लेकिन उसकी कौन सुने स्टेशन से 7 नंबर पहुंचकर जायका में संभावनाएं तलाशी गर्इं, मेरे जैसे सिगरेट खोरों ने कुछ धुएं के छल्ले उड़ाए और फिर उधर रहने वाले लोगों को शुभ रात्रि बोलकर रचना नगर वाले बाशिंदे वापस टहलते हुए आ गए। ऐसी हजारों खट्टी-मीठी यादों के साक्षी वो फोटो अब आॅरकुट के साथ दफन हो गए हैं। ये मुआं आॅरकुट फोटो ही नहीं ले गया अपने साथ, उसे वो पल भी हमेशा के लिए चुरा लिए हैं, जो हम सबने मिलकर जिये थे।
अब याद आता है तो लगता है ठीक ही है, क्योंकि जिन चित्रों को निकाल नहीं सका उन्हें देखकर अच्छा तो जरूर लगता मगर नैस्टाल्जिया कुछ वक्त तक जीने नहीं लेता। खींच ले जाता है उस गुजरे वक्त की ओर जहां अपना चैन दफन है। हमारे विभाग की यादों के गूगल बाबा तो हमारे परम मित्र शिवचरण अमेटा थे, जिनके पास थोक के भाव हमारी यादें थीं। ये और है कि उनके कैमरे से कैद की गई तस्वीरें आज तक किसी को नसीब नहीं हो सकीं। रेल की तरह छुक-छुक करके लंबा वक्त गुजर गया, सुजितवा वार्ता की नौकरी के बाद पत्रकारिता का धंधा ही छोड़ गया, फिलहाल उड़ीसा में कैग के आॅडीटर के रूप में काम कर रहा है। उसने 2010 की मंदी के दौरान अपनी अलग राह चुनी और लगातार कोशिशों के बाद लगभग 2 साल पहले कामयाबी ने उसको धन्य किया। बाकी चेहरे अभी भी जमे हुए हैं इसी कारोबार में। सुजीत मेरी जान भाई चाहता तो था कि ये पोस्ट काफी अहतराम से लिखकर तेरे आगामी जन्म दिन पर चस्पा करूं, मगर तस्वीर देखकर रहा नहीं गया। फिर कभी आॅरकुट की किसी तस्वीर के बहाने कोई याद का मोती टपकेगा और उसे सहेजने की कोशिश करूंगा।

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