मेरी आवारगी

तुम्हारा स्पर्श प्रकृति से साक्षात्कार है

कभी-कभी प्रेम में यूँ भी होता है कि लगता है चाँद तुम्हारी आँख के कजरे में छुपा है और सूरज घनी जुल्फों की बदली से निकल रहा है। सवेरे तुम्हारी मुस्कराहटों से फूटते हैं और काली रातें तुम्हारी पलकों में दबी हैं। तुम सामने होगे तो सारी कायनात मिल जायेगी। गोया कि वो सवेरे तुम्हारे हंसते ही मेरे आसपास छिटक जाएंगे। रातें तुम्हारी पलकों से बाहर आकर ढलने की इजाजत मांगेंगी। चाँद और सूरज प्रेम में अटखेलियां करेंगे। कोई प्रेम का सागर तुम्हारी आँख से टपकेगा और मैं जीवित हो जाऊंगा। तमाम उदासियाँ निचोड़ के रख दूंगा तुम्हारी हथेली पर, वो तितली बनकर उड़ जाएंगी दूर जंगल में। हाँ तुम्हारा स्पर्श प्रकृति से साक्षात्कार है...मैंने ये प्रेम पाठ तुम्हारे होने के अहसास से ही पढ़े हैं। हर बार तुम्हारी कनखियों से झरता जीवन ओढ़ा है मैंने। जैसे मेरी बेबसी तुमसे होकर जमीन में धंस जाती है। यकीनन ये किसी जादू से कम नहीं। हाँ तुम जादूगर हो...मेरे अल्फाज में सिमटने से पहले बिध जाते हो आत्मा में किसी अमिट छंद की तरह...।
#आवाराकीडायरी
आवारा ही लिये हैं ये तस्वीर।  किराए के कमरे की छत से औरंगाबादी आसमां में ढलता दिन ।  

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