मेरी आवारगी

रोटी तुमको देखा तो ये खयाल आया

चित्र: हमारे ही झुनझुने से एक दोपहर खुद की बनाई रोटी का

रोटी तुमको देखा तो ये खयाल आया। आज तुम्हें खाने से पहले दिल की तमन्ना है। आज कुछ बातें हों। तुमसे कुछ बातें हों। सबसे पहले कि तुम यूँ बदनाम क्यों हो? अगर लजीज हो इतनी तो ख़ास होकर भी यूँ आम क्यों हो ? आज इतने मनमर्जी के सवालात हो जाएँ के हम तुमसे हैं फिर भी तुम गुमनाम क्यों हो ? क्या वाकई दुनिया के सारे कर्मों और कुकर्मों के पीछे तुम्हारा हाथ है। जिसे देखो अपने सब किए धरे पर यही पानी फेरता है कि पेट का सवाल था। रोटी की जरूरत ने ऐसा बना दिया। जिसको इसने बेहतर बनाया वो शायद इसका हवाला नहीं देता लेकिन जो बर्बाद हुआ और गलत राह पर चला गया अक्सर यही बोलता है। पेट का सवाल था रोटी के लिए सब करना पड़ा। रोटी तो यूँ भी मिल जाती है। 
असल में रोटी नहीं इसके अलावा वो कुछ पाने की चाह में सब होता है। इस सारे झोल में कुछ और भी है जिसने इस मुलायम और स्वाद रोटी को बदनाम किया है। है तो वो भी भूख ही पर रोटी की नहीं जल्दी पैसा कमाने की भूख, दौलत के लिए सब कुर्बान करने की भूख, जिंदगी में अति महत्वकांक्षा की भूख। पेट तो यूँ भी सब भर ही लेते हैं। इंसान तो बस पेट की आड़ में पीठ का और रीढ़ का कमजोर बना रहता है। रोटियों में गजब की ताकत है सारा जीवन टिका है इस पर। ऊर्जा का भण्डार है। फिर ये इतनी बेमानी नहीं हो सकती कि किसी को मजबूर कर दे। कर्री भूख के बाद भी ईमान ज़िंदा रह सकता है। क्या दुनिया के सारे असहाय-लाचार और रोटी न जुटा पाने वाले भूखे चोर हो जाते हैं...शायद नहीं कुछ भूख से मर जाते हैं और कुछ भिखारी हो जाते हैं। 
रोटी पर कोई चिल्लर चिंतन करने का मूड नहीं है। न ही ज्ञान बघारने का बस यूँ ही इसकी बदनामी से कुछ ऊहापोह निकल पड़ी। दिमाग में घण्टी तब बजी जब इसे बना रहा था और उसके बाद तस्वीर निकाली तो सवाल कौंधा ? क्या तुमने सबको बुरा बना दिया? तुम्हारी चाह में गुनाह हुए? तुम्हारे लिए सारा फसाद ? तुम तो जैसी फूली हो वैसी ही मुलायम हो। ठण्डी होने के बाद भी भूख मिटाती हो। फिर लगा नहीं तुम वो नहीं हो। तुम तो बस बदनाम हो। 
सारी फसाद की जड़ तो ये तरह-तरह की भूख है। केवल पेट की भूख में अंदर का आदमी नहीं मरता। न जाने कितने मर गए इंसानियत नहीं छोड़ी और ईमान नहीं तोड़ा। बाकी कुछ तो कमजोर कड़ियाँ हर जगह मिल जाती हैं। फिर भी मैं तुम्हें खाने से पहले आज चूमना चाहता हूँ। तुमसे प्रेम हो गया। तुम खानाबदोशों और फक्कड़ों से लेकर राजा-रंक सबसे वैसे ही मिलती हो। एक समान। 


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