मेरी आवारगी

मैं प्रेम का वो अनंत होना चाहता हूँ...

आपना मोबाइल उसका कैमरा और किराये की छत से दिखता आसमान 
मैं किसी यात्रा का नहीं तुम्हारी खोज का अंत होना चाहता हूँ। मैं वो अनंत होना चाहता हूँ जहाँ विश्राम में भी बस प्रेम ही मिले। मौन का अपना राग हो, देह का कोई भान न हो और आत्मा भी समाधि में हो। पोर-पोर उसी प्रेम की खोज में लगा देना चाहता हूँ। ये केवल दैवीय आभास ही क्यों रहे, मैं मानवीय प्रेम में उस दिव्यता के दर्शन का आकांक्षी हूँ। दैवत्व भी प्रेम के पूर्ण दर्शन से ही उपजा है। जब मन का कोना-कोना प्रेम के अलौकिक आनंद से भर जाए, सारा जग अपना लगने लगे और स्वयं को सबका महसूस करने लगूं। समझ लूँगा जीवन की सबसे ऊर्जावान शक्ति को पा लिया है। 
-आवारा मन की मरोड़ का प्रेम दर्शन

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