मेरी आवारगी

ये कविता का वक्त नहीं है


मोबाइल से उत्तरी एक तस्वीर औरंगाबाद की शाम 
उसने कहा ये कविता का वक्त नहीं 
और तुम लिख भी नहीं सकते हो 
क्योंकि तुमने पढ़ा नहीं सलीके से 
तुम महज भोगा हुआ लिखते हो 
समझा और सुलझा हुआ नहीं
तुमने बस महसूस करना जाना है

जिंदगी के फलसफे ही नहीं तुम्हारे
प्रेम पर जी जराए बैठे हो तो लिखते हो 
पानी होना चाहते हो और हवा सी बातें 
मुद्दे तो तुमने अब तक समझे ही नहीं हैं 
अब पनामा लीक पर तुम क्या बात करोगे 
फरवरी गुजरी अब मार्च के बाद अप्रैल

मई में दिवस होगा मजदूरी पे मत बोलना
मैंने तुमसे पहले ही कहा है अप्रैल है ये 
फिर तुमने लिखने के लिए कुछ नहीं लिखा 
बस बेमतलब के राग में फाग करा रहे हो 
कभी विमर्श करो और गहरा चिंतन हो 
पूरब से पश्चिम तक के सब बड़े नाम रटो

प्यासे होकर प्यास लिखना काफी नहीं 
उसकी पूरी थीसिस लिखनी पड़ती है 
अब सबका व्याकरण बना दिया गया है
तुम्हारे अंदर से वो जो दर्द फूटता है न 
उसको किसी कटोरे में भरकर पी जाओ
हर भीख मांगते बच्चे पे कविता नहीं होती

जो हर चौराहे पे चिथड़ी दिखती है जिंदगी
उसको रंगा-चंगा दिखाने की कोशिश करो
कविता में नौ के अलावा दसवां रस चाहिए 
कितनी बार कहा जो दिखे और बिके वो कवि
इस आखिरी पंक्ति तक भी तुम नहीं लिख पाए
मैंने पहले ही कहा था ये कविता का दौर नहीं है

-सरपट बेलगाम आवारा खयाल 

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