मेरी आवारगी

ये अंधी दौड़ कहाँ ले जाएगी

मरते तो हम सब हैं रोज थोड़ा-थोड़ा। बिन पानी किसान की फसल के मरने में उसकी उम्मीद मरती है, कहीं कम दिहाड़ी मिलने पर मजदूर के घर के चूल्हे की आग मरती है। कहीं बिन पैसे गरीब के बच्चे की पढ़ाई की आस मरती है। न जाने और कौन-कौन, कहाँ-कहाँ कितनी-कितनी बार हर रोज मर रहा होता है। ये बस सरकारों की गलती नहीं है। 
ये इस कमजोर हो रहे समाज की सबसे बड़ी खामी है, जहाँ परवरिश इतनी मजबूत नहीं कि इम्तिहान में फेल होने वाला बच्चा कमजोर न पड़े। जहाँ रिश्तों में प्यार इतना कम मिला कि मोहब्बत में मिला धोखा जिंदगी लील गया। जहाँ खेत में अन्न की जगह यदि भूख उग जाए तो जिंदगी का हर निवाला हजम हो जाए। जहाँ अपनेपन की दौलत से इतने महरूम हो गए कि खजाने पर बैठकर भी मरहूम होना पड़ा। ये सबसे तीखे सवाल हैं जो इसी समाज से निकले हैं और इसी से पूछे जाने चाहिए। आखिर कब तक इतने कमजोर इंसान गढ़ता रहेगा ये समाज। एक तो ये कमजोर समाज और उस पर भी ये समय और सफलता पाने के लिए चल रही अंधी दौड़ का दबाव। जहाँ इस पर सब कुर्बान करने को उतारू हैं लोग। 
ये दौड़ते-भागते दिन, ऊंघती रातें। सपनों के अम्बार या महत्वाकांक्षाओं का पहाड़। कोई खोज जारी है जैसे। अनवरत दौड़ है जिंदगी। बस उठो भागो और दौड़ते रहो। वो मुझसे आगे निकल गया, नहीं मैं हार कैसे गया। थमना नहीं है मुझे। बस करियर चाहिए। सपने चाहिए हर कीमत पर। ठहराव किसी को पसन्द नहीं। सच्चे रिश्ते नहीं चाहिए। प्रेम नहीं चाहिए। नाम, शोहरत और दौलत चाहिए। 
खुशियों की बस यही एक चाबी है। ये नहीं तो कुछ नहीं है और इसके लिए सब कुर्बान। पर सच यही है ये सब पाने के लिए जब इंसान प्रेम, रिश्ते और अपनेपन से बेपरवाह अंधा होकर दौड़ता है, तो उसके हाथ सिवाय इस माया के कुछ नहीं लगता है। शायद तभी अहसास होता है उन्हें कि इस बुलन्दी पर आकर तो कुछ भी साथ नहीं है। और उसका हश्र दफन है इतिहास में। फिल्मी दुनिया से लेकर आम दौलतमंदों तक, दम तोड़ती जिंदगियां बताती हैं कि हकीकत कुछ और है।
किसी भी कामयाबी के साथ-साथ अगर जीवन में प्रेम भरे रिश्ते और लोग नहीं हैं तो अकेलापन आदमी को खोखला कर देता है। इस अकेलेपन के साथ सफलता पाने और हजम करने वाले फक्कड़ किस्म के लोग बहुत कम होते हैं। ये हुनर जिसको भी अता हुआ वो अकेला होकर भी अपने पास दुनिया बटोर लेता है। इसलिए जिंदगी से मिलते रहिये, हंसते रहिये और प्रेम बांटने और पाने के लिए सफल कोशिश करिये। चन्द कौड़ियों के लिए सुकून मत खोइए। इस अंधी दौड़ से कुछ हासिल नहीं होगा। बाकी तो सब माया है। समाज ऐसा बनाइये जहाँ पारिवारिक ढांचा इतना मजबूत हो कि जिंदगी कभी कम या छोटी न पड़े। इस खेत में लहलहाती सरसों की तरह मकसद बस अगर जिंदगी में फूलना हो तो सब जन्नत हो जाएगा। महको और महकाते रहो। चहको और चहकते हुए चहकाते भी रहो। 
       @आवारा का राम राम
गाँव में उम्मीदों से  लहलहाते खेत 

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