सेल्फी |
मार्च 2012। आवारा की डायरी।
ये होली तुम्हारी जिंदगी में ढेरों रंग भरे...
न कुछ बेरंग रहे और न बदरंग
इसी उम्मीद के साथ तुम्हारे लिए
कुछ-कुछ कविता जैसा
मुझे पता है हर बार की तरह
तुम इसे पसंद नहीं कर पाओगी....
हालांकि मुझे भी रास नहीं आई है,
क्योंकि अब तक की सबसे बुरी लिखाई है शायद।
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होली फिर आई है
रंगों की वो गुजरी शाम महक आई है
मेरे गाल पर तुम्हारी छुअन
और उसकी ताजगी आज तक...
तुम्हें भी याद हो शायद रंग तुम ही लाई थी,
मैं तो बस तुम्हारे रंग ही देखता रहा...
तुमने हरा रंग पहना था,
लाल गुलाल हमने हवा में उड़ाया था
तुम भूल गई क्या,
मेरे गाल तो तुम्हारी चिकोटी से ही लाल हो गए थे
गजब रंग था उस होली का मैं तो नहीं भूला
शायद कभी भूलूंगा भी नहीं
वो रंग जो हमने खेला था
मुझे याद है तुमने बहुत रंगबिरंगी बातें की थीं
हम साथ गए थे ऐसे ही
एक-दूजे के रंग में रंगे...
अपने-अपने घर की ट्रेन पकडऩे,
मेर गांव की भांग वाली होली से तुम्हारा
जी बहुत घबराया था...
वो मेरा भंगिया खाकर तुमसे बतियाना
और तुम्हारा डांटना
हां मां ने भी तो तब तुमसे बात की थी,
क्या कहा था उसने मेरा ख्याल रखना....
शायद तुमने उधार सा कहा था, मगर फिर भी
तुम्हारा शुक्रिया उन तमाम खूबसूरत पलों के लिए...
उन्हें संजोने के लिए, उनमें भिगोने के लिए
देखो ये लिखते-लिखते
अंदर से सारे रंग बह निकले हैं....
अब सब रंगारंग है...तुम साथ हो इन शब्दों के सहारे
होली मुबारक हो...तुम्हें।
: आवारा : तस्वीर 2016, शब्द 2014 के और यादें 2012 की।
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