मेरी आवारगी

ये महक शादी का कार्ड नहीं, प्रेम का परचम है...!!

ये केवल कार्ड नहीं है। मुझे तो प्रेम का कोई लहतारा परचम दिखता है, जिसने समाज के अंदर धँसी संकीर्ण मानसिकता पर विजय पाई हो। हाँ शादी का कार्ड ऐसा भी हो सकता है। ये इंदौर के मीडिया कर्मी सुबोध होल्कर जी द्वारा उनकी बेटी की शादी के लिए तैयार किया गया कार्ड है। ये जितना एक पिता के प्रेम से लबालब है उतना ही पुरुष के विशाल हृदय में भरी प्रेम की अनुभूति से भी डूबा है।
 एक ओर जहाँ पुरुष प्रधान समाज में आज ऑनर किलिंग और जातपात के नाम पर प्रेमी युगलों को मारने की घटनाएं आम हैं, वहां ऐसे छोटे-छोटे उदाहरण बदलाव की बयार का संकेत देते हैं। यूँ तो इस पाखंडी समाज ने प्रेमियों और प्रेम को हमेशा कुचला है, लेकिन उससे कई गुना मजबूती से सशक्त और सफल प्रेम कहानियों ने भी जन्म लिया है। प्रेम के लिए विरोधाभास और स्वीकारोक्ति वाला रवैया हमेशा से समाज में रहा है। हालांकि समाज की झूठी शान और दंभ के लिए आज भी प्रेमियों का कत्ल जारी है, फिर भी प्रेम की ऊर्जा से दुनिया ऊष्मा ग्रहण करती रही है और करती रहेगी। बहरहाल बात इस कार्ड की थी, जिसने काफी कुछ लिखने पर विवश किया।
   इसे रचने-गढ़ने वाले सुबोध जी का वैचारिक खुलापन और अमीरी इस कार्ड को पढ़कर दिख जाती है। उनकी प्रेम को स्वीकारने की सरल और सहज बुद्धि के लिए उन्हें नमन। मुझे तो प्रेम विवाह को प्रेमोत्सव बनाने वाले कार्ड पर छपे ये शब्द बस आमन्त्रण का तरीका नहीं हैं बल्कि एक दर्शन से लगते हैं।ये प्रेम को लेकर संकीर्ण मानसिकता के बीच समाज में आ रहे सुखद बदलाव की भी बानगी है। दमदार अभिव्यक्ति के साथ उम्दा वैचारिक तालमेल है इसमें। शायद इसीलिए इन शब्दों ने कुछ और नए शब्दों को जन्म दिया है। ऐसे कार्ड ही नहीं बल्कि ऐसे खूबसूरत लोगों की भी समाज को बेहद जरूरत है, ताकि दुनिया ज्यादा प्रेम भरी हो सके। 
नोट: जो प्रेम करेगा वो प्रेम देगा जो प्रेम पाएगा वो ही बांटेगा, जो रस से भरा नहीं है, खाली है वो कैसे कुछ देगा। इसलिए प्रेम करो साधु। 
चित्र: वाट्सअप से सुबोध होल्कर जी के मित्र सूर्यकांत पाठक सर से प्राप्त हुआ और एक ब्लॉग लिखवा गया।



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