मेरी आवारगी

'पिंक' क्यों देखनी चाहिए : प्रवीण दुबे

 प्रवीण दुबे 
अभी-अभी पिंक निपटा कर लौटा हूँ। अहा.....हा...क्या गज़ब मूवी है... तर हो गया मन। महिला सशक्तिकरण की बात करने वाली सरकारों को इसे सभी कॉलेज मे दिखाना चाहिए। सरकार का जो महिलाओं से जुड़ा विभाग है, उसे इस फिल्म को अपनी डाक्यूमेंट्री की तरह इश्तेमाल करना चाहिए।  किसी टू व्हीलर का एक ऐड था Why should boy have all the fun, उस ऐड का बेहद परिष्कृत और सलीके से एक प्रभावी संदेश की माला पिरोकर किया गया विस्तार है ये फिल्म। ये समाज के उन सफेदपोशों, बुद्धिविलास करने वालों पर भी जमकर तमाचा है, जो खुद तो लड़कियों महिलाओं के सामीप्य के अभिलाषी रहते हैं लेकिन पीठ घुमाते ही उनके बारे मे अनर्गल प्रलाप करते हैं। दरअसल, ये मुझे बेहद अच्छी इसलिए भी लगी क्यूंकि  मैं भी लड़कियों की एक स्वतंत्र सत्ता का पक्षधर हूँ और उनकी निजता का बेहद सम्मान करता हूँ। बचपन से लेकर आज तक मैंने किसी भी लड़की के चरित्र पर सिर्फ उनके हाव-भाव और आचरण के कारण सवालिया निशान नहीं लगाया। दिन भर काम की थकान के बाद भी मजा आ गया, तबीयत हरी हो गई। फिल्म के नायक बेशक अमिताभ बच्चन हैं लेकिन तापसी पन्नू,कीर्ति कुल्हारी और पीयूष मिश्रा ने कमाल का अभिनय किया है। कामकाजी महिलाओं की अपनी ज़िंदगी को समाज कैसे चश्में से देखता है, ये इस फिल्म मे इतने लाजवाब तरीके से दिखाया गया है कि ऐसी सोच रखने वालों के मानस मे फिल्म के कई संवाद ताड़-ताड़ तमाचे जड़ देते हैं।... मुंह उठाकर किसी भी लड़की को चरित्र प्रमाणपत्र जारी करने वालों को तो पकड़-पकड़ कर अपने खर्चे से ये फिल्म दिखाना चाहिए। उन्हे पता चलना चाहिए कि जो सरल है, सहज है, खिलंदड़ है, बिंदास है, वो उपलब्ध नहीं है आपके लिए...उसके No की बहुत क़ीमत है....  अच्छा ये है कि ये  फिल्म अपनी नायिकाओं के जरिये ही स्वच्छंद आचरण की एक हद भी खींचती है और ये समाज की परम्पराओं के पालन के लिए थोपी नहीं जा रही, बल्कि उन्हे सतर्क करने के लिए है.....कहानी के बारे मे कुछ नहीं लिखूंगा लेकिन इतना ज़रूर कहूँगा कि "लड़कियो जियो जी भर के" .....और हाँ....शिवराज जी, इससे पहले कई बार अंड-बंड फिल्मों को टेक्स फ्री कर चुके हैं आप, इसे करिए टेक्स फ्री और लड़कियों से कहिए कि इस फिल्म को देखें....तालियाँ और मेरी तरफ से 5 स्टार.....
-वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण दुबे जी की फेसबुक वॉल से साभार।

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