ये खुद को जिंदा रखने का एक सार्थक प्रयास है ।
मैं दर- दर फिरा कि कही हमें भी आशियाना मिल जाए।
कम्बख्त ये जालिम दुनिया कहां बिना जलन के रह पाए।
आख़िर संचार के इस युग मे इस ब्लॉग का सहारा हो गया।
अपना भी कविताओ का पिटारा हो गया।
धन्य है वो संचार का पुरोधा
जिसने इस ब्लॉग को उकेरा ।
एक कवि के अन्तर मन का सत-सत प्रणाम स्वीकार हो।
मैं दर- दर फिरा कि कही हमें भी आशियाना मिल जाए।
कम्बख्त ये जालिम दुनिया कहां बिना जलन के रह पाए।
आख़िर संचार के इस युग मे इस ब्लॉग का सहारा हो गया।
अपना भी कविताओ का पिटारा हो गया।
धन्य है वो संचार का पुरोधा
जिसने इस ब्लॉग को उकेरा ।
एक कवि के अन्तर मन का सत-सत प्रणाम स्वीकार हो।
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