ये इस ब्लॉग का पहला पोस्ट है जिसे सालों बाद पूरा लिखने जा रहा हूँ। उत्साह में शूरू किया गया ये चिट्ठा बंद ही रहा। लगभग 4 साल तक तो मैं यहाँ फटका भी नहीं। लिखने से जी ही उचाट हो गया था। या यूँ भी कह सकते हैं कि करियर के शुरुआती दिनों में वक्त काफी कम मिलता था। तकनीक के लिहाज से संसाधन और जरूरी उपकरणों की निहायत कमी रही जिसने इस यात्रा पर लगाम लगा दिया था। हालांकि अभी भी इसमें कुछ सार्थक नहीं हो पाया है। मगर कोशिश जारी है।
उम्मीद है कि इस चिट्ठे को बेहतर से बेहतर बनाने की पूरी कोशिश की जाएगी। काम जारी है जिंदगी की मशरूफियत से ज़रा सा वक्त निकालकर इसके लिए बस अपना चिल्लर-चिंतन साधते रहते हैं। फिलहाल इसके विस्तार के लिए किया जाने वाला काम अभी रुका हुआ है। कभी ब्लॉग का भविष्य देश में बेहतर दिखाई देता था और चिट्ठों की बाढ़ सी आ गई थी।
ऐसे ही वक्त जब मैंने 2008 में यह ब्लॉग बनाया था तब भोपाल की गलियों में पत्रकारिता का प्रशिक्षण ले रहा था। लगभग 30 छात्रों के बैच में हर बंदे ने ब्लॉगिंग शुरू कर दी थी। हमारे एक साथी को तो इसका ऐसा चस्का लगा कि उन्होंने विभिन्न भाषाओं में गूगल महाराज के सहारे अपने 10 ब्लॉग शुरू किये थे। अब उनकी क्या हालत है यह तो पता नहीं। मगर विचारों को पाठकों तक रखने का तब यह एक उत्तम माध्यम है। लगातार लिखने वाले आज इनसे कमाई भी कर रहे हैं किसी ने नाम कमाया तो कोई धन की लालसा में लगा रहा है।
फिलवक्त जो भी हो अपना काम केवल लिखना है। लोग आएं न आएं। कुछ पढ़ें या न पढ़े। प्रतिक्रया के इंतजार में शब्दों को रोकना सही नहीं है। इसलिए शब्दों में गोता लगाना फिर से प्रारंभ किया गया है। अब जमाना फेसबुक, गूगल प्लस, ट्विटर का है जहाँ तुरत जवाब आता है। आपकी एक चिट्ठी पर हाजिर जवाब लिए लोग अपने-अपने स्मार्ट फोन से टिप्पणियाँ करते हैं। दिल बाग़-बाग़ हो जाता है। हम अपने लिखे को लोगों तक पहुंचाकर सार्थक समझते हैं और खुद में शब्दों की बाजीगरी की ख़ुशी तलाशते हैं। अपना ज़रा सा उलटा मामला है। बस लिखने के लिए लिखते चलो आगे वक्त देखेगा हमने क्या लिखा और क्यों। फिलहाल विदा। लिखाई जारी है।
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