महंगा के आई है महंगाई बच के रहना मेरे भाई दूध दही सब्जी भी खाना है।
तो जेब खर्च भी बचाना है इधर घर भी चलाना है बीबी के जेवर और साड़ी भी तो लाना है ।
अफसरों अधिकारियों का क्या है उन्हें तो महंगाई भत्ता पाना है।
अपना तो गरीबी में आटा गीला है दो वक्त की दाल रोटी का जुगाड़ लगाना है।
वही चाकरी है पुराना पैंट और फटा पैजामा है।
राघव जी का क्या है सरकारी माल ही तो खाना है।
गरीबी रेखा कौन बनता है गरीब कों गरीब कौन बताता है।
जो ए सी कार मे गाना सुनते सुनते ठुमका लगता है।
अब देश का दुर्भाग्य कहिए की अमीरों और गरीबों के बीच की खाई का बढ़ता जाना है।
एक तरफ़ अमीरों के महलों का विदेशों में परचम लहराना है।
तो दूसरी तरफ़ गरीबों की झोपड़पट्टी का बढता जाना है।
विकास की यही राह है हमें तो बस बढते जाना है।
गरीबों का क्या है ना सही दाल रोटी पानी पीके ही सो जाना
बिजली तो उन्हें चाहिए जिन्हें कूलर और ए सी चलाना है।
अपना क्या काम पूरा करके रात में घर जाना है तब तो टूटी खाट में ही नींद आना है।
अब छोड़ो यार कहाँ तक कहें किसी पे कोई बदलाव थोड़े आना है।
तो जेब खर्च भी बचाना है इधर घर भी चलाना है बीबी के जेवर और साड़ी भी तो लाना है ।
अफसरों अधिकारियों का क्या है उन्हें तो महंगाई भत्ता पाना है।
अपना तो गरीबी में आटा गीला है दो वक्त की दाल रोटी का जुगाड़ लगाना है।
वही चाकरी है पुराना पैंट और फटा पैजामा है।
राघव जी का क्या है सरकारी माल ही तो खाना है।
गरीबी रेखा कौन बनता है गरीब कों गरीब कौन बताता है।
जो ए सी कार मे गाना सुनते सुनते ठुमका लगता है।
अब देश का दुर्भाग्य कहिए की अमीरों और गरीबों के बीच की खाई का बढ़ता जाना है।
एक तरफ़ अमीरों के महलों का विदेशों में परचम लहराना है।
तो दूसरी तरफ़ गरीबों की झोपड़पट्टी का बढता जाना है।
विकास की यही राह है हमें तो बस बढते जाना है।
गरीबों का क्या है ना सही दाल रोटी पानी पीके ही सो जाना
बिजली तो उन्हें चाहिए जिन्हें कूलर और ए सी चलाना है।
अपना क्या काम पूरा करके रात में घर जाना है तब तो टूटी खाट में ही नींद आना है।
अब छोड़ो यार कहाँ तक कहें किसी पे कोई बदलाव थोड़े आना है।
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