मेरी आवारगी

शहन्शाहों का था कभी खास,भोपालियों ने किया निराश

ब्लॉग रिपोर्टर
भोपाल। नवाबी ठाठ -बाठ की कभी शान रहा भोपाली बटुआ आज भले ही शैलानियों के आकर्षण का केन्द्र हो लेकिन भोपाली बाशिंदों मे इसकी पूंछ परख कम होती जा रही है।

लगभग दो सौ वर्ष पहले मुगलों की शौकमिजाजी की देन ये बटुआ आज भी रिवायत के रूप में यहाँ कायम है, मगर लेदर ,रैग्जीन और कपड़े के बैंगों के सामने इसकी छवि धूमिल पड़ती नजर आ रही है।
राजधानी मे है कहाँ - यूं तो कई दुकानदारों नें इस व्यवसाय कों बंद कर दिया है लेकिन पुराने भोपाल के लखेरापुरा बाजार में आज भी कुछ दुकानें शेष नजर आती हालांकि इन्हें चलाने वाले आज भी फक्र महसूस करते हैं।
क्या कहते हैं व्यवसायी- बटुआ व्यवसायी सुनील पारेख बताते हैं कि उनके खानदान कि तेरह पीढी इस परम्परा कों बखूबी अंजाम देती आई हैं। यहाँ पांच रुपए से लेकर नौ हजार रुपए तक के बटुए उपलब्ध हैं। एक अन्य दुकानदार मुहम्मद खालिद कहते हैं की भोपाल के लोग बटुआ लेने में सैलानियों और दुसरे शहरों के लोंगों की तुलना में कम रूचि दिखाते हैं।
कैंसे बनते हैं बटुए -सिल्क ,मखमल ,साटन ,मोती,रिकोरा ,सलमा , सितारा और चांदी के तार व मजबूत धागों से कुशल कारीगरों द्वारा हाथ से बनाए जाते हैं ये काम धीमा ही सही मगर आज भी जारी है।
शख्सियतों के हैं खास -राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ,प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ,भूतपूर्व राष्ट्रपति शंकर लाल शर्मा ,प्रख्यात कवियत्री महादेवी वर्मा सहित हर क्षेत्र की कितनी ही बडी हस्तियों की पसंद रहे है ये भोपाली बटुए। हालांकि ये बटुए विशेष फरमाइश पर आज भी बिड़ला घराने और स्वर कोकिला लता मंगेशकर के यहाँ हर वर्ष भेजे जाते हैं।

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