मेरी आवारगी

मौत हकीकत जिंदगी इत्तफाक

मौत को हकीकत जिंदगी
 को इत्तफाक स्वीकारते हैं।
मौत देन है कुदरत की 
परमात्मा को पुकारते हैं।
गमों खुशी के स्पर्श से
 प्रफुल्लित हो उठा मन।
जिन्दगी को अपन कभी 
हकीकत से नकारते हैं।

जिस्म से दिल कब का
 हो चुका काफूर।
रोशन है फिर भी शमा
इंतजार परवाने का।
न जाने वो शाम कहाँ खोई जहाँ
 इंतजार था जिन्दगी बिताने का।
जिन्दजी एक खेल है लगता है
 जी भर के खेलूं इसे।
बेमौत मर रहा हूँ 
ये कहाँ मालूम है उसे।

जब गमों का बादल जिन्दगी 
की सुनहरी धूप को सताने आया।
जिन्दगी मे उधार का जीना लाया।
कम्बख्त दुनिया ने जब-जब रुलाया।
हमें एक पुराना अफसाना याद आया 
कि रोते हुए आते हैं सब 
हँसता हुआ जो जाएगा
वो मुकद्दर का सिकंदर 
जानेमन कहलाएगा।

आवारा

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