मेरी आवारगी

चुनाव आ रहे हैं

ॐ ऐ ह्रीं क्लीं 
चामुंडाय विच्चै
चुनाव आ रहे हैं 
सभल के रहना बच्चे।
ॐ कांय कांय कांयकांय।
क्या करें अब कहाँ जाएं । 

वोट- सपोट सब पुकारे 
खिसक रहे हैं प्राण हमारे
ॐ प्रचार ॐ नारे।
ॐ दंगे ॐ प्रलोभन 
जनता का कर रहे हैंदोहन।

ॐ राजनीति का पहलू है 
नेता सारे दलबदलू हैं ।
जनता का जो रोना है 
इन्हें वोट उसी पर लेना है ।

सब ॐ सफेद लिबासों में 
अपने काले से वादों में ।
हर बार इन्हीं इरादों में।
ॐ कामयाब होते आए
खद्दर के उलझे धागों में 

ॐ तो अबकी नारा है 
जनमत ने इसे सुधारा है 
अबकी चढ़ा जो पारा है
जन-जन ने जोर संवारा है

ॐ चुनाव नहीं हैं कच्चे 
धुल जाएंगे अच्छे-अच्छे
रहेंगे तो बस सच्चे-सच्चे
साहब भी देखकर हाल
मांग रहे हैं गुलाब लच्छे 

ॐ चुनाव की चांय-चांय
जल्द निपटेगी कांय-कांय
(बचपन में छोटे भाई के साथ
 मिलकर लिखी एक कविता 
स्कूल में इसे प्रथम पुरस्कार 
से नवाजा गया था)

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1 Comments

रंजना said…
Waah ! bahut bahut badhiya vyngya kavita likhi hai aapne.