औरंगाबाद डायरी- 11-12-2012
तुम तब आए जब जीवन नीरश हो गया था। उदास शामों में तुम्हारी तपती हथेली मेरे हाथ पर उस नमी का अहसास कराती है, जिसकी छुअन मैं भूल चला था। तुमने वक्त की दबी राख में जलाती चिंगारियों को ठंडी बूंदों में तब्दील किया है। तुम किसी जादूगर से कम नहीं हो। बहती आँखों के पानी को तुमने प्यार के अमृत में तब्दील किया है मैं तुम्हारी कला का कायल हो गया हूँ। जीवन उदासियों के बीच जब आँख से झर रहा था तुमने संगीत का कोई सोता मेरे कानों में घोल दिया। अब सब ओर तुम्हारी मिठास है।
तुम्हारे लिए जीवन की पीड़ा और उससे उपजा वैराग समझना शायद कठिन रहा हो, मगर मेरी नियति के परे प्रेम पर तुम्हारा भरोसा इन ढाई अक्षरों पर मेरा यकीन पुख्ता कर गया। न जाने जीवन के किस क्षण में तुमसे मिलना हुआ है कि खुश रहने का पराग ही खो चुका हूँ। अब इतना मायूस होकर भी जिया नहीं जा सकता और जिसने जीवन में बस खोना सीखा हो उसके लिए उम्मीदें किसी चुभते शूल से कम नहीं जो पल-पल जेहन को सालती रहती हैं।
जीवन के रंगबिरंगे सपनों में हमेशा नया संसार होता है। और हमें नया तो चाहिए ही नहीं शायद एक तुम हो जिसने जिद ठानी थी। बिना मुझे बदले तुम जिन्दगी बदलने वाली कीमियागिर हो जिसके लिए मुझे अपनी किस्मत चमकानी नहीं पड़ी। सच कहते हैं लोग जिंदगी और वक्त घाव के साथ-साथ मरहम भी लेकर आते हैं। नासूर अब भी हरा है मगर तुम्हारा रामबाण शायद काम कर रहा है। उम्मीद कि जिंदगी हरी हो और इन खंडहरों की अमावस वाली काली रात के इतर पूर्णिमा का चाँद भी निकलेगा।
सूरज अब भी मेरे लिए एक और बोझिल दिन लेकर ही आता है। तुमने मुझे बिना बदले जिस कदर जीवन बदला है उस जादूगरी के लिए तुम्हें जीभर देखने का मन हो चला है। तुम घनी काली रात में वीरान जिंदगी के फलक पर चमकता उम्मीद का चाँद हो। तुम्हारे लिए इश्क सलामत रखूंगा क्योंकि तेरी कजरी आँख बहुत कुछ कहती है और उनसे बतियाना मुझे भाने लगा है।
महाराष्ट्र की धूल फांकते वक्त अन्ना गाँव के पास पहाड़ पर |
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