मेरी आवारगी

बदहाली से गुजर रही उल्कापात से बनी झील ‘लोनार’

झील के किनारे पर तैरकर आई गंदगी के पास खड़े पाठक सर
लोनार का करीबी नजारा
झील के ऊपर बनी चौकी
पाठक सर झील के पानी और तैरते कचरे के पास
ये हाल है यहाँ का जो आपको दुःख देगा
ये वो सीढ़ियां हैां जो झील तक जाती हैं
लोनार झील....उल्कापात से बनी दुनिया की एकमात्र झील है, जो मेरे मौजूदा ठिकाने औरंगाबाद, महाराष्ट्र से लगभग दो सौ किलोमीटर की दूरी पर है। पाठक सर और अरुण भाई के साथ 2013 के गणेश विसर्जन के दौरान वहां जाने को मौका मिला। हम झील के एकदम करीब जाने के लिए उसके ऊपर बने मंदिर से सीढ़ियों और जंगली रास्ते का लगभग 3 किलोमीटर का सफर तय करके नीचे तक गए। जहां से विहंगम झील का नजारा देखने का मौका मिला। इतनी जैव विविधता और पर्यावरणीय महत्व वाली अपनी तरह की दुनिया भर में अकेली झील होने के बाद भी इसको संवारने और सहेजने के कोई ठोस इंतजाम आज तक नहीं किए गए हैं। इसके संरक्षण के लिए लोनार झील के नाम पर अरबों-खरबों रुपए नेताओं और प्रशासकीय अधिकारियों के पेट में पहुंच गए हैं, लेकिन भाई लोगों ने डकार तक नहीं मारी है। लोनार गांव के स्थानीय लोगों से जब हमने हालात का जायजा लिया तो काफी सारी चौका देने वाली बातें सामने आर्इं।
 प्रदूषण से जूझ रही झील 
दिन-रात प्रदूषित हो रही इस झील के हालात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अब इसके पानी में नहाने से लोगों को चर्म रोग हो जाते हैं, लेकिन एक दशक पहले तक आलम यह था कि इसमें एक बार नहाकर हर तरह का चर्म रोग गायब हो जाता था। सबसे बड़ा आश्चर्य है कि इसके पानी में मछलियां आज तक नहीं पनप पाती हैं, बावजूद इसके पानी कंचन की तरह साफ हो जाता है। फिलहाल लगातार बहकर इसमें पहुंच रही गांव भर की गंदगी इसकी मध्यम-मध्यम मौत का कारण बन रही है। मुझे वहां गए हुए ठीक एक साल हो चुका है, लेकिन उस दौरान भी झील पहुंचने की ऊपरी चौकी पर न तो कोई बाड़ थी, न ही किसी तरह का सूचना पटल चस्पा था, जो इतनी रोमांचक जगह के महत्व और उससे जुड़े आश्चर्यजनक तथ्यों की जानकारी दे सके।
 यहां  दुनियाभर के शोध हुए 
ये चारो तरफ से ऐसी गोल है कि उल्कापात से बनाए जाने का पूरा प्रमाण देती है। नासा सहित दुनियाभर के दूसरे वैज्ञानिक गतिविधियों वाले केंद्रों ने इसकी पुष्टि की है। अब यह पुरातत्व, जीवविज्ञानियों और पर्यावरणीय संरक्षकों के हवाले है। दुनिया भर के वैज्ञानिक यहां का पानी, पत्थर और मिट्टी शोध के लिए लेकर जाते रहते हैं। यहां के स्थानीय रहवासियों की मानें तो नासा का एक दल लगभग 5 साल काफी पहले यहां झील को करीब से समझने के लिए एक माह बिताकर जा चुका है। उन्होंने वाटर वोट से इसका कोना-कोना घूमा और जगह-जगह के नमूने इकट्ठा किए। भारतीय पर्यवेक्षकों का दल भी कई बार इसका शोध कर चुका है। समय-समय पर अभी भी इसके पानी के नमूने एकत्र कर जांच-पड़ताल यथावत जारी है, लेकिन इसे सहेजने के लिए तथाकथित सारे प्रयास अभी भी नाकाफी सिद्ध हो रहे हैं।
 लोनार प्रकृति की अनूठी रचना
लोनार झील के ऊपर मौजूद एक कुंड है, जिसमें एक गौमुख है उससे साल के 12 माह पानी गिरता रहता है। काले पत्थरों से बना एक मंदिर और कुछ सीढ़ीनुमा चबूतरा है, जिसके ऊपर से लोनार झील का विहंगम दृश्य देखने को मिल सकता है। आप चाहें तो बिना नीचे जाए, ऊपर से आॅटो या अपने निजी वाहन से इसका लगभग 15 किमी का परिक्रमा लगाकर भी इसका आनंद ले सकते हैं। ऊपर से झील तक नीचे जाना मेहनत का काम होता है। इसके आसपास का सौन्दर्य भी आपको रोमांचित कर देगा। रास्ते में पुरातन शैली का एक महादेव मंदिर भी आपको मिलेगा, जो जंगल के ठीक बीचो-बीच उसके बचे हुए अवशेष के रूप में है। उस रोज मैं अरुण और पाठक सर घुमक्कड़ी के पूरे मूड में थे और पाठक सर से जब सीखने का मौका मिले तो भला कैसे छोड़ा जाए। लोनार को नजदीक से निहारना अद्भुत है, मगर उसकी दुर्दशा देखकर दुख होना भी लाजमी हैं। यूूं तो उसकी उसकी खूबसूरती का दृश्य हमेशा के लिए आपकी आंखों में कैद होना चाहिए, लेकिन उसकी बदहाली देखकर आप द्रवित हो उठेंगे। यदि आप आंखों से नहीं रूह से प्रकृति का प्रेम महसूस करते हैं, तो लोनार की हालिया व्यथा पर आपको बस रोना ही आएगा।
प्रकृति का सबसे बड़ा शत्रु मानव
झील पहुंचने के लिए जंगल और हरियाली के बीच से होकर जाना गजब का अनुभव है। जैसे-जैसे आप सीढ़ियों से होकर झील के पानी तक पहुंचने के लिए नीचे जाते हैं, आपके साथ-साथ एक नालीनुमा रास्ते से पूरे शहर की गंदगी भी नीचे तक उतरती है। दुखद यही है कि महाराष्ट्र सरकार हमेशा झूठे दावे करती रहती है, दूसरी ओर पर्यापरण-प्रेमी संगठन भी लोनार में सालों से लगातार झोकी जा रही गंदगी के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं। कहने को एक फिल्ट्रेसन सिस्टम लगा है, मगर वह पानी साफ करना तो दूर पन्नियां,पाउच, प्लाटिक और दुनिया भर का दृश्य कचरा भी झील में जाने से नहीं रोक पाता है। गांव वालों ने बताया कि दुनियाभर से शोध करने वाले आए मगर इसको बचाने के लिए कोई नहीं आता। सब कागज पर ही होता है। आज तक ऊपरी भाग में न ही कोई ढंग का बोर्ड है इस झील की सारी जानकारी से युक्त और न ही ठिकाने का प्रबंध। लोनार प्रकृति की अनूठी रचना है। आदमी के स्वार्थ ने इसकी भी दुर्दशा कर दी है, आलम ये है कि जिसमें नहाने से कभी चर्म रोग ठीक होते थे अब उसमें नहाना उन्हीं रोगों को न्योता देना हो चला है। लोगों ने लोनार की पूरी गंदगी और नालियों का रुख झील की ओर कर दिया है। झील के किनारे पड़ा कचरा बताता है कि हम वास्तव में प्राकृतिक धरोहरें सहेजने को लेकर कितने सजग और सभ्य हैं। ये देखकर पता चलता है कि सही मायनों में कितना विकास किया है हमने। वास्तव में प्रकृति का सबसे बड़ा शत्रु मानव ही है और मानव जहां पहुंच गया है वहां उसने अपनी गंदगी से जन्नत को भी दोजख में बदल दिया है।






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