मेरी आवारगी

मन्ना डे: इक जुग बीता

मन्ना डे ने 18 दिसंबर 1953 को केरल की सुचित्रा कुमारन से विवाह किया। सुचित्रा का रवीन्द्र संगीत से लगाव ही उन्हें मन्ना की ओर खींच लाया। उनकी दो बेटियां हुईं। बड़ी बेटी का नाम शुरोमा और छोटी का नाम सुमिता है। मन्ना की पत्नी का निधन कैंसर से हुआ। उनके जाने के बाद वे उदास रहने लगे। अक्सर रोते रहते थे।


सुरों की लड़ियां छेड़ हमारे मन को झंकृत कर संगीत का पर्याय 24 अक्टूबर को हमें अलविदा कह गया। मन्ना डे को सुनना दिल को सुकून और ज़िंदगी को सीख देने वाला था। चाहें ए मेरी जोहराजबीं... हो, जो हमेशा हमें युवा बने रहने सीख देता है। या फिर दोस्ती को समर्पित अनुपम भेंट यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी... कस्मे वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या... हमें हमेशा ज़िंदगी को गुनगुनाते रहने की सीख देते रहेंगे।

मन्ना को संगीत की पहली शिक्षा उनके चाचा से मिली। बचपन में संगीत के अलावा उन्हें कुश्ती और मुक्केबाजी का भी शौक था। स्कूल-कॉलेज के दिनों में ही वो खाली समय में गीत गाते थे और उनके साथी टेबल का तबला बजाकर साथ देते थे। रोज इंटरवल का यही नियम था। उन्होंने तीन साल लगातार इंटर कॉलेज कॉम्पीटीशन में पहला स्थान पाया।
ज़िंदगी की मौत से हार निश्चित है मगर मन्ना के गाए गानों ने मौत को मात दे दी है। मैं यहां बात करूंगा उनकी ज़िंदगी के के कुछ ख़ास पहलुओं की जिनके बारे में मैं नहीं जानता और मेरे जैसे कुछ और भी होंगे जो उनके गानों को गुनगुनाते तो होंगे जरुर मगर उनके बारे में जानते नहीं।

मन्ना ने तक़रीबन 3500 गाने रिकॉर्ड किए और वो भी करीब हर भारतीय भाषा में। पंडित भीमसेन जोशी के साथ मशहूर गीत केतकी गुलाब जूही... और किशोर कुमार के साथ अलग-अलग शैलियों में गाने गाए। 


 सम्मान 
1971 पद्मश्री सम्मान  
2005 पद्मविभूषण सम्मान 
2007 दादा साहब फाल्के सम्मान

 पहला गीत और गांधीजी
1943 में आई फ़िल्म 'तमन्ना' से मन्ना को पहला गीत गाने को मिला। गीत था- जागो आई उषा, पंछी बोले जागो..। इसी गीत में मन्ना के साथ सुरैया थीं। हालांकि इससे पहले वो 'रामराज्य' में कोरस गा चुके थे। यह एक मात्र फ़िल्म थी जिसे महात्मा गांधी ने देखी थी। 
1942 में चाचा कृष्णचन्द्र के साथ वह मुम्बई आए और सचिन देव बर्मन के असिस्टेंट हो गए। किशोर, मुकेश और रफी की तिकड़ी में उन्हें अपनी मौजूदगी दर्ज़ करानी मुश्किल थी। ऐसे में उन्हें महमूद और प्राण के लिए गीत गाने पड़े। हिन्दी फ़िल्म संगीत में उन्होंने 1950 से 1970 के दशक तक रफी, मुकेश और किशोर के साथ राज किया। 


आत्मकथा जिबोनेर जॉलसाघारे (ज़िंदगी का जलसा घर) 2005 में बंगाली में आई थी। अंग्रेजी अनुवाद- मेमोरीज कम  अलाइव, हिंदी- यादें जी उठीं। मराठी में भी इसका अनुवाद हुआ है।

कुछ गाने जिनमें डाल दी जान 
ऐ मेरी जोहराजबीं तुझे मालूम नहीं... 
यारी है ईमान मेरा यार मेरी ज़िंदगी... 
ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे... 
कसमें-वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का क्या...
तू छुपी है कहां मैं तड़पता यहां... 
पूछों ना कैसे मैंने रैन बिताई...
लागा चुनरी में दाग छुपाऊं कैसे... 
एक चतुर नार कर के श्रृंगार... 
तुझे सूरज कहूं या चंदा... 
प्यार हुआ इकरार हुआ प्यार से फिर क्यों डरता है दिल...



अलविदा 
जन्म: 1 मई 1919 
निधन: 24 अक्टूबर 2013


इनपुट: दैनिक भास्कर और पोस्ट साभार www.lallantaap.blogspot.in

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