एक खूबसूरत सुबह का गूगल बब्बा से उधार लिया चित्र |
रात को खत्म होने में बस कुछ पल बचे थे, हाथ में अधजली सिगरेट से उठता धुआं उसकी आत्मा को भेद रहा था। नहीं ये नहीं हो सकता इतने सालों बाद उस बेरहम को मेरी याद आई भी तो कैसे? आंख के सामने यादों का ऐसा गुबार और धुएं की गंध उसके मन को चीर रही थी। किसी भीतरी परत पर सिमटा दर्द फिर जिंदा हो चला था, वक्त की चादरों को उठाता हुआ उसका मन कुछ साल पीछे जा ठहरा था। घड़ी अपनी रफ्तार से भोर के चार बजा रही थी और नींद से बोझिल पलकें मुंदने का नाम नहीं ले रही थीं। वो एक गहरी थकन से जूझते हुए किसी गुजरे दौर में खड़ा था....जहां प्रेम था, यर्थाथ से कोसों दूर अपनी अल्हड़ तरुणाई में निस्वार्थ प्रेम। ओह! कितना ऊष्ण था वो स्पर्श ऐसी ही किसी भोर में बदन पर गिरती सुनहरी धूप जितना।
वो दिन खुशगवार थे, वहां जीवन की गंध थी...जीने की लालसा के साथ एक तीव्र ऊष्मा। 365 से ज्यादा दिन बीत गए थे उस चिरपरिचित आवाज को सुने और आज अचानक रात 12 बजे उसकी तपन को महसूस करते हुए कब के 3 बज गए उसे पता ही नहीं चला था। वो भावनाएं भड़काने वाले दृव्य (एक तरह का मादक पदार्थ) के नशे में करीब 3 घंटे से भी ज्यादा देर तक उसकी बातें सुनता रहा। ढेरों सुखद स्मृतियों में डूबकर वो निकट भविष्य की कपोल कल्पानाओं में भी गोते लगा रहा था।
अपने कमरे के बाहर बने छोटे से आहाते में उस शहर की कालोनी में पसरे सन्नाटे को जीता हुआ वो उन करिश्माई एक जोड़ा कारे नयनों के साथ बीते वक्त में उलझा रहा। प्रेम किसी जादू की तरह होता है उसका गुजरा हुआ हर अहसास भी आपमें ऊर्जा भर देता है। बीते वक्त की किसी चौराहे पर खड़े होकर उसे याद आया नरम हाथों का एक स्पर्श, जिन्हें थामकर दुनिया को ताक पर रखा गया था। वो सोच रहा था कि सुबह हो चली है उसे अब सोना नहीं है... उस एक रिश्ते की बीती हर कड़वाहट को भूलने से पहले, उसके साथ हुई हर नाइंसाफी का वो पहले हिसाब मांगेगा। पूछेगा उससे कि आखिर कमी कहां रह गई थी, क्यों आखिर क्यों उसने मुंह मोड़ने का संकल्प किया था। और अब इतना वक्त गुजरने के बाद दबे पांव किसी चोर की तरह जिंदगी में किसी भूचाल की तरह आने के प्रलाप का आश्य क्या है?
रिश्तों में जमी बर्फ को हटाने के लिए एक बार फिर वो उत्साहित था, लेकिन ये जो काली रात अक्सर गिने-चुने सवेरों के बाद उनके बीच आ धमकती थी। उस आशंका को लेकर वह आश्वस्त नहीं था, क्योंकि वो कजरे नयन खुद में जीने के आदी थे। प्रेम भी उनके लिए बंधन था, शायद सिर्फ बंधन....जिसके लिए वो आवरगी ताक पर रखने को आमादा था। उसके हर रंग में रंगकर खुद को कई मर्तबा बेरंग करता रहा था, वो रंगरेज न जाने किस रंग में रंगा था।
बीते वक्त को याद करके उसकी रगों का खून तेजी से बह चला था, ऐसी सुबह जब नींद भरी पलकें जागने की इजाजत दे दें और रूह किसी रूहानी अहसास से लबरेज हो जाए....उसने सालों बाद देखी थी। अंधेरा छट चुका था, सिगरेट के कशों ने डिब्बे में आखिरी बची धूम्रदंडिका को भी लील लिया था....धुआं उसकी श्वासनलियों से होता हुआ फेफड़ों में जा लिपटा था। अलसुबह दूर आकाश के एक छोर से निकलता सूरत अपनी गुनगुनी धूप से उसकी आत्मा को सेंक रहा था। वो तसल्ली से जिंदगी में ऐसी किसी सुबह के आने का ऊपर वाले से शुक्रियादा कर चादर तान कर अरसे बाद बेफ्रिकी की नींद सोना चाहता था। आखिर वो जागने की जगह एक बार फिर गहरी नींद के ओर चल पड़ा था....!!
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