मेरी आवारगी

ये विवि के बर्बादी की नई दास्तान है

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय में बीते 5 से 6 सालों में हुए बदलाव उसे आबाद नहीं बर्बाद कर रहे हैं. पत्रकारिता विश्वविद्यालय में ऐसे परिवर्तनों का क्या फायदा जिससे छात्रों को लिखने-पढ़ने, बोलने-समझने की आजादी न मिल सके. चाहे वो लैब जर्नल निकालने की बात हो, चाहे सेमिनारों की परिचर्चा में भाग लेने की. केवल किताबें पढ़ाकर पत्रकार बनाना कहां तक जायज है ? बिना किसी फील्ड के अनुभव के छात्र कैसे और कहां नौकरी मांगने जाएंगे. इन बदलावों ने हर विभाग से निकलने वाले लैब जर्नल खा लिए, सेमिनार, संगोष्ठी,  परिचर्चा सत्र और स्टडी टूर भी लील गए. 
इतना ही नहीं इंटर्नशिप के लिए मिलने वाला समय भी नहीं दिया जाता है, तो सबसे बड़ा सवाल ये है कि आप विवि से निकलने वाले पत्रकारों की पौध को आज की गलाकाट प्रतियोगिता में कहां खड़ा करेंगे? वो मीडिया में बिना किसी प्रायोगिक अनुभव के  कितने दिन टिकेंगे?
लंबे समय से चल रहे कोर्सेस का संघीकरण इस कदर किया गया कि देशभर में उत्कृष्ट माना जाने वाला पत्रकारिता का सिलेबस बस मजाक बनकर रह गया है. सांइस जर्नलिज्म जैसे बेहतर कोर्सों को केवल द्वेषवश बंद कर दिया गया, जिसमें बच्चे कम पैसे में एक साल की कड़ी मेहनत से रोजगार पाते थे. तो फिर आपने क्या बदला, दीवारें रंगी, इमारत के कार्यालयों को कार्पोरेट लुक दे दिया, परिसर में जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे और केबिनों में पर्दे लगा दिए. इस बाहरी चमक-दमक की बजाय लाइबे्ररी की किताबें, कम्प्यूटर लैब में तकनीक और इनके खुलने-बंद होने की समय सीमा पर ध्यान दिया होता तो छात्रों का भला होता. दूर-दूर से माखनलाल विवि का नाम सुनकर मन में हजारों ख्वाब लिए बच्चे सीखेंगे कहां से और कौन सिखाएगा? तानाशाहों को कक्षा की हाजरी जरूरी लगती है तो दिनभर कक्षा के नाम पर कमरे में बंद रहने से न तो लाइब्रेरी में स्वाध्याय के लिए समय बचा और न ही लैब में तकनीक सीखने का मौका.
ऐसे ढेरों नए बदलाव किस लिहाज से और कहां तक सही हैं? कितने सालों से चल रहे विकल्प, पहल और सत्रारंभ विशेषांक जैसे लैब जर्नल दम तोड़ गए. ये वो अखबार थे जिनमें खून-पसीना एक कर छात्र आज की प्रतियोगिता के दौर में अपने को हर अखबार के दफ्तर में मजबूती से खड़ा होने का हौसले पाते थे. आपने वो भी छीन लिया ? बाहर से शिक्षकों की तौर पर आने वाले वरिष्ठ छात्रों या पत्रकारों का आपने विवि में आना बंद कर दिया, तो मीडिया में हो रहे बदलाव और चुनौतियां नए छात्र किससे सीखेंगे? आपसे पूछकर शिक्षक लाए जाते हैं जो पत्रकारिता में योग और आध्यात्म का महात्म समझाते हैं? आप क्या सिखाना चाहते हैं और कैसे बदलाव किए हैं आपने ? ये बर्बादी की नई दास्तान है जो कुलपति साहब आपके राज में लिखी गई है.  मुझे अफसोस के साथ ये लिखना पड़ा है. दुख होता है.
    विवि का एक पूर्व छात्र

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