मेरी आवारगी

बर्फ सा है तुम्हारा प्रेम

बर्फ सा है तुम्हारा प्रेम। पिघलता रहता है अंदर ही अंदर गहरे तक घुलने के लिए। कभी मौसम सर्द हो तो सतह पर फिर जम जाती है यादों की बर्फीली मोटी चादर। अंदर कोई आग लगा देना चाहता हूँ वो सब पिघलकर बह क्यों नहीं जाता, जो बारिशों में देर तक बरसता रहता है जी के उस कोने में। तुम्हारी याद के फाहे से अक्सर पोछता हूँ रूह की शीलन गोया कोई जादू है कि फिर पसीज जाती है। कोई बारीक सा रेशा बाकी रह गया हो शायद हमारे बीच का जिसे तोड़ नहीं पाया। पानी फिर टपक रहा है यादों का छप्पर टूट गया है...भीगने का मौसम है मैं सूखना चाहता हूँ। तुम मेरी मदद क्यों नहीं करते....चले आओ बस तुम्हारी एक छुअन चाहिए। अभिशापों में पला था हमारा प्रेम...तुम्हारी आँख का कजरा बह रहा है...बारिश तेज है आओ मगर वो रिसने वाली छतरी ले आना। बारिश से बचते हुए भीगने का अपना मजा है न...।।

#आवाराकीडायरी

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