सभी तस्वीरें अपने झुनझुने से चंदेरी यात्रा के दौरान |
बीते साल विकास संवाद की मीडिया वर्कशॉप में जाने का अवसर मिला था। वहां इस नायाब कृति के दर्शन हुए। हालांकि ज्यादा जानकारी जुटा भी नहीं पाया इसके बारे में। लेकिन सोचकर बस यही समझ आता है कि वो जिसके लिए ये मकबरा बना उसका नाम आखिर उजागर क्यों न हुआ। उस प्रेमी की मजबूरी थी या इस मकबरे का निर्माण पूरा होने से पहले उसका चले जाना। बात जो भी हो। उसने अपनी प्रेमिका के लिए कुछ अलहदा बनाने का सोचा था और शायद उसको पूरा करके भी गया। हो सकता है उस वक्त ये अपना सशक्त प्रेम दिखाने और जताने का कोई बादशाही तरीका रहा हो। या फिर किसी राजा ने अपनी कनीज की मोहब्बत में इसे बनाया हो। दुनिया से और अपनी बेगमों के डर से इसे कोई नाम न दिया हो। उसके लिए वो राजकुमारी ही थी। शायद इसीलिए यहाँ जो दर्ज है वो किसी अनाम राजकुमारी के खूबसूरत मकबरे की कहानी कहता है।
इस नगर में चन्देरी साड़ी ही नहीं ऐतिहासिक मस्जिद, महल, कटी घाटी जहाँ से मुगलों ने आक्रमण के लिए रास्ता बनाया था। और न जाने कैसी-कैसी रूहानी दरगाहें हैं। जो अपने आप में कितनी कहानियाँ समेटे हुए हैं। कहा जाता है कि यहाँ के बुनकर ढाका का सुप्रसिद्ध मलमल बनाने वाले खानदानों से हैं। वो विपरीत स्थितियों में वहां से पलायन कर यहाँ बस गए और फिर कभी वापस नहीं गए। कितनी पीढियां यहां खपा दीं चंदेरी सिल्क के लिए। कभी केवल राजे-रजवाड़ों के लिए ही बनाया जाने वाला चंदेरी सिल्क आज भले ही सबके लिए उपलब्ध हो, उसका बादशाही अंदाज अब भी कम नहीं हुआ है।
ये इश्क ही तो है एकदम अलहदा उस बादशाह का अनाम राजकुमारी के लिए और इन बुनकरों की सैकड़ों पीढ़ियों का इस चंदेरी सिल्क के लिए। इसीलिए इस शहर में कहानियाँ हैं बहूत सी कहानियाँ। कुछ प्रेम की, कुछ दासता की, कुछ रूहानियत की तो कुछ अपनी तरह की। फिलहाल जो भी हो प्रेम तो बस छिटका पड़ा है हर ऐसे शहर में दबा हुआ भी है और उजागर भी जिनकी अपनी जुबान इस अनाम राजकुमारी के खण्डहर की तरह हमेशा के लिए खामोश कर दी गई है।
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