मेरी आवारगी

सुनो वो मिट्टी सोना हो गई है....

सुनो वो मिट्टी सोना हो गई है, जिसमें हमारा प्रेम दफन है...अब उसी से खर्चता हूँ कतरा-कतरा इश्क। दुनिया में जहर बहुत है ये प्रेम की पुड़िया कब तक चलेगी इसी फ़िकर में हूँ। कितना भयंकर समय है प्रेम की बेरी मुरझा रही है। पानी सीचने वाले नफरत का तेज़ाब लिए बैठे हैं। जो सहेजा जा सके वो बस यही तो है, दुनिया वो भी छीन लेना चाहती है। मैं बिना तुम्हारे पूरी कायनात में महसूसता हूँ तुम्हारा प्रेम।
   कुछ मुझे पागल भी कहते हैं कुछ समझते हों शायद कि जब कुछ नहीं बचेगा तब भी बस प्रेम ही रहेगा। किसी हाड़-माँस की देह से नहीं तुम्हारी आत्मा से अनुराग हुआ है मुझे। इस देह का भान होना तो उसी दिन बंद हो गया था जब तुम्हारी रूह में मशरूफ हुआ। ये जो इश्क की अंगीठी सुलगाई है तुमने क्या कहूँ न जलाई जले है न बुझाई बुझे है। इस दुनियावी दयार में इसका कोई मोल नहीं है। बस ये आग अब कलेजे को ठंडक देती है। अंदर किसी कोने में उस अंगीठी की आग धधक रही है और एक कोना तुम्हारी तपती याद से ठंडा है।
     याद की एक फांस है जो अब तक चुभी है, देखो न अधूरे ख़्वाब भी तुमसे मिला देते हैं। अजब दुनिया है इन ख़्वाबों की, हकीकत से कोसों दूर, इश्क के सारे फरेबों के इतर तुम मिलने आ ही जाते हो....आते रहना। उस पेड़ की छाँव में नदी किनारे अकेला नहीं बैठा जाता। कभी-कभी वहां बहती हवा से आई तुम्हारी छुअन जब माँस और हड्डियों को पिघलाकर अंदर दाखिल होती है, तो प्रेम तुम्हारी आँखों से बरसकर मेरी आँख की पुतली में ठहर जाता है....मैं फिर किसी बरसात के इन्तजार में होता हूँ, सुनो मुझे पता है तुम सिरहाने बैठे हो। ख़्वाब है तो क्या हुआ जब बादल छा जाएं मुझे इस नींद से जगा देना। बावली मैं सपने में ही सही तुम्हें खोना नहीं चाहता इसलिए अभी सोना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ ये बारिश भी अब ख़त्म होने को है मगर वो बदरा नहीं बरसा है...!!
#आवाराकीडायरी
ढलती शाम में सूरज को देखते हुए एक बावरा 

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