ये औरंगाबाद की महिष्माल पहाड़ी है मेरी जान |
हम बर्बाद होकर कहते हैं कि तुम आबाद हो जाना,
ये बर्बादियों का मंजर भी तराश लिया है हमने।
क्या कहें अब इस कदर सुकूं पसरा है रूह में
कि तलब नहीं हमें जिन्दगी फिर तेरा गुलजार हो जाना।
आवारा मिलेंगे कभी खैरमक्दम में तुझसे,
तो देखना मुकम्मल होगा मेरे लिए तेरा गुनेहगार हो जाना।
ये जहर सा जो है तासीर में तेरी,
मयस्सर बनके बहता है रगों में मेरी।
तुम क्या मदहोश करोगी हमें,
हुनर लूट लाए हैं इश्क की दयारों से।
हमें आता है बिन पिये झूमकर खालिश नशेबाज हो जाना।
-आवारा का अगड़म-बगड़म
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