मेरी आवारगी

आप जिन्दा हो...आपके बोल रह जाएंगे

मौत भले ही सब-कुछ मिटा देती हो, वो कोई "स्वर"नहीं मिटा सकती और 'निदा फ़ाज़ली' में निदा का तो मतलब ही "स्वर" होता है। फ़ाज़ली उन्होंने कश्मीर के एक इलाके फ़ाज़िला के नाम पर बतौर उपनाम जोड़ा था, जहां से उनके पुरखे आकर दिल्ली में बस गए थे।  इसलिए उन्होंने अपने उपनाम में फ़ाज़ली जोड़ा। ये भी खूब है कि "निदा" के "स्वर" अमर हो गए और फ़ाज़िला के लिए उनका इश्क भी फ़ाज़ली से जाहिर होता रहा। और सारी दुनिया उनको मुक़्तदा हसन नहीं निदा फ़ाज़ली के नाम से जानती है। वो इसी नाम से शायरी करते थे। आज सोमवार 8 फरवरी 2016 को उन्होंने आखरी साँस ली तो बहुत कुछ थम गया।
    वो कारवां जो उनके जादुई अल्फ़ाज़ों से लबरेज़ था, वो दौर, वो वक्त जो उनके लिए जाना जाएगा। अब सब इतिहास हो जाएगा।  यकीनन जिंदगी का हर निशाँ मिटा देना उसके हक़ में है मगर कुछ रचा और गढ़ा हुआ हमेशा जिंदा रहता है। कहते हैं न बोल अमर हैं। आज निदा फाजली साहब का निधन नहीँ हुआ उनकी रूह को और रूहानियत अता हुई है। जिंदादिली की मिसाल और बेहद मासूमियत से सादगी भरी अलहदा शायरी कहने वाले फाजली साहब हर दिल में जिंदा रहेंगे।
    उनके उस कहन के क्या कहने जहाँ खुदा की इबादत बच्चों की हंसी में मिल जाती है- 'घर से मस्जिद है बड़ी दूर चलो यूँ कर लें किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए'। उन्होंने बंटवारे के बाद पाकिस्तान की बजाय हिन्दुस्तान में ही रहना उचित समझा। कहते हैं फिर भी कोई टीस थी जिससे उनकी ये गजल पैदा हुई कि 'कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीँ मिलता'।
    हालांकि मुझे लगता है जो जिंदगी का सुखनवर है वही ये गढ़ता है कि 'कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता, कहीं ज़मीं तो कहीँ आसमाँ नहीं मिलता'...और इसी गजल का आखरी शेर सुनिये कि 'तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो, जहाँ उम्मीद हो इसकी वहाँ नहीं मिलता'।
   हर रंग में डूबी उनकी गजलों के शेर और उनके अल्फाज बस रूह तक पहुंचते हैं और घर कर जाते हैं। ये रूहानियत का अहसास ही उनका कद गजल, शायरी और कविता से भी बड़ा कर देता है। जिंदगी का दर्शन हो, खुदा की इबादत या माँ का प्यार सब इतनी बेबाकी और बारीकी से सादगी के साथ गढ़ा उन्होंने कि सबकी जबान पर चढ़ गया। वो माँ के लिए कहते हैं कि
   "बेसन की सोंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ
    याद आती है चौका-बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ "
   वो अपनी ही तरह के शायर हैं जिनकी बेपनाह और बेशकीमती अश्आरों की दौलत और फनकारी के हुनर से हम सब मालामाल हैं। वो तो बस शायरी के इश्क में जी भर जिये और अदबी खजाना लुटाते रहे। उन्होंने जहां खुदा को बच्चों की हंसी में खिलखिलाते दिखा दिया वहीं मौला से फिक्रमंद होकर ये भी कहा कि :-

।। गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला, चिड़ियों को दाना, बच्चों को गुड़धानी दे मौला

दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है 
सोच समझवालों को थोड़ी नादानी दे मौला 

फिर रोशन कर ज़हर का प्याला चमका नई सलीबें 
झूठों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला 

फिर मूरत से बाहर आकर चारों ओर बिखर जा 
फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला 

तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यों हो 
जीने वालों को मरने की आसानी दे मौला।।

#निदाफाजली #आपकी रूह को सुकून अता हो
#श्रद्धांजलि #आपके अल्फ़ाज़ रौशन रहेंगे सदा

मैं क्या लिखूंगा उनके बारे में। सचिन श्रीवास्तव सर की naiebaraten.blogspot.in नई इबारतें में कुछ उम्दा मिलेगा। फ़िलहाल उनका लिखे एक पीस का  पीडीएफ भी इस पोस्ट के साथ चस्पा कर रहा हूँ।

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