मेरी आवारगी

नाउम्मीदी में ही उम्मीद छिपी है

जहाँ किसान सबसे ज्यादा मौत को गले लगा रहे हैं उसी महाराष्ट्र के विदर्भ में कुछ किसान उम्मीद की ऐसी अलख भी जगा रहे हैं कि मौत घुटने टेक दे और जिंदगी खिलखिला उठे। लोकमत समाचार में 3 जनवरी 2016 को छपी विदर्भ के गढ़चिरौली की ये रपट एक ऐसे ही किसान की है जिसने मोती संवर्धन से घोर नाउम्मीदी में उम्मीद का दिया जलाया। संजय गंडाटे ने लगातार सूखे की मार झेल रहे विदर्भ में लाखों रुपये के मोती संवर्धित कर वहां के किसानों के लिए एक मिशाल पेश की। वो कहते हैं न कि करने वाले बस कर जाया करते हैं और मरने वाले अक्सर मर जाया करते हैं। 

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