मैं अपना हाल ए दिल कैसे बयां करूं।
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मैं अपना हाल ए दिल कैसे बयां करूं।
दर्द की भट्टी में वक्त- बेवक्त तपा करूं।
मैं अपना हाल ए दिल कैसे बयां करूं।
मौत को बस छूकर फिर से जिया करूं।
जिंदगी से इसी हुनर का गुर लिया करूं।
मैं अपना हाल ए दिल कैसे बयां करूं।
मुश्किलों से दो - दो हाथ हर रोज़ किया करूं।
बस यूं ही आंधियों में चिराग रौशन किया करूं।
मैं अपना हाल ए दिल कैसे बयां करूं।
इतना सा ही फ़लसफ़ा है कि हंसता रहा करूं।
हंसना असल हासिल है कि जी भर हंसा करूं।
मैं अपना हाल ए दिल कैसे बयां करूं।
लिखना कोई शय नहीं, बस यूं ही लिख दिया करूं।
ना सही साहित्य तो क्या, आप बीती कह लिया करूं।
मैं अपना हाल ए दिल कैसे बयां करूं।
मुझे शम्मा ना समझ कि बस बुझती- जलती रहा करूं।
मैं तो आशिक हूं 'आवारा' परवानों सा जलता रहा करूं।
मैं अपना हाल ए दिल कैसे बयां करूं।
- 8 सितम्बर 2025
© दीपक गौतम "आवारा"
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