मेरी आवारगी

मैं हंसता रहा हड्डियां टूट जाने के बाद


मैं हंसता रहा हड्डियां टूट जाने के बाद
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जब आपकी हड्डियां अक्सर टूट जाती हों,
तो मनोबल न टूटे ये थोड़ा मुश्किल है।
कभी चार पसलियां टूट गईं,
कभी किसी पैर की हड्डी,
कभी हाथ की हड्डियां दो टुकड़े हो गईं।
कभी तो यूं हुआ कि चलते-चलते फिसले
और टूट गई फिर कोई हड्डी।
मैं फिर भी हंसता रहा बार- बार हड्डियां टूट जाने के बाद।

मेरी हड्डियां टूटती रहीं, लेकिन कभी हौसला नहीं टूटा।
मैंने अपने ठहाकों से दर्द पर मरहम लगा दिया।
बीते तीन सालों में ये पांचवीं बार है जब फिर से टूटी
हैं एक साथ मेरी चार हड्डी। 


अबकि तो यूं हुआ कि स्कूटी फिसली
और टूट गईं दोनों हाथ और एक पैर की हड्डी।
सड़क पर बिखरे कंकड़ या
जगह - जगह हो गए गड्ढों को कोसता रहूं,
या फिर स्कूटी की ही गड़बड़ है,
जो फिसल गया उसका अगला चक्का।
कोई न कोई बात तो है, जो टूटती है बार- बार हड्डी।

नहीं- नहीं ये हड्डियों की ही कमजोरी है,
जो अक्सर दो टुकड़े हो जाती हैं।
सड़क पर स्कूटी फिसलते ही मैं जोर से चीखा
कि फिर टूट गईं दो-चार जगह हड्डी।
बेतहाशा दर्द में मैं फिर हंसा अपनी बदकिस्मती पर कि अभी छह माह भी नहीं हुए प्लेट रिमूवल के ऑपरेशन को।
क्या कहूं कि फिर उसी जगह से दो टुकड़े हुईं बांए हाथ
की हड्डियां। 

तब तक मुझे आसपास खड़े लड़कों ने उठाकर फुटपाथ पर बिठा दिया।
मेरे फोन से घरवालों को फोन मिला दिया, मदद की आस थी तो भले लोगों ने अस्पताल भी पहुंचा दिया।
इसी बीच हो चुके एक्सरे की रिपोर्ट ने तीन जगह से चार हड्डियों में फ्रैक्चर बता दिया।
मैंने हंसते-हंसते दर्द को एक बार फिर से बुद्धू बना दिया।
क्योंकि मैं फिर से मुस्कुराता ही रहा हड्डियां टूट जाने के बाद।

मैंने इस बार भी ठहाकों के शोर में अपनी चींखो को दबा दिया। ऑपरेशन थियेटर में जब एनस्थीसिया से सुन्न हो गए थे हाथ, जब शरीर में हो रही चीर-फाड़ की सिर्फ आवाजें सुनाई दीं हों,
जब हड्डियों में प्लेट और स्क्रू कसना सिर्फ कान से देखा हो,
जब हाथ- पैर सुन्न करने के लिए बार-बार छेदे गए हों आप,
जब रीढ़ की हड्डी में दस बार छेदने पर मिले एनस्थीसिया इंजेक्ट करने का प्वाइंट।
तब अपनी ही दुर्दशा पर हंसना जरा मुश्किल होता है।
मैं फिर भी हंसता रहा हड्डियां टूट जाने के बाद। 

             अबकी बार रक्षाबंधन कुछ यूं मना था। 

जब ऑपरेशन के वक्त हड्डियों की ड्रिलिंग बेचैन करने लगी।

तब मैंने डॉक्टर से संगीत सुनने की सिफारिश की।
"पल-पल दिल के पास तुम रहती हो" का माधुर्य जब मेरे कानों में घुल रहा था।
ठीक उसी वक्त डॉक्टर मेरे बाएं हाथ के आधा फुट चीरे को संगीत के आनंद के बीच सिल रहा था।
थोड़ी देर पहले ही मैंने उससे मेरे बाएं हाथ की दोनों हड्डियों पर कसे गए स्क्रू और प्लेट का हिसाब मांगा था।
डॉक्टर ने दो प्लेट और अठारह स्क्रू हाथ में ठूंसने की बात कहा था।
ये मेरी हड्डियों की मेहरबानी है कि अब मेरे शरीर पर एक नहीं तीन- तीन चीर फाड़ की स्थाई निशानी हैं।
मैं अब हड्डियों से कहता हूं, तुम टूटती रहो,
मैं हंसना नहीं छोडूंगा जानी।
क्योंकि हंसना ही है असल जिंदगानी।

महज तीन साल में आधा फुट चीरकर यदि चार बार सिला गया हो आपका एक हाथ।
फिर अबकी बार तो दोनों हाथ ही नहीं रह गए किसी काबिल।
जब मुनासिब ना हो हाथ से पानी का गिलास उठा पाना।
जब अपने ही हाथ से लिखने को तरस जाएं आप,
जब अन्न का निवाला भी बूढ़ी अम्मा के हाथों से हलक के नीचे उतरे, जब छोटी सी बेटी को गोद में लेने के लिए मन तड़पे,
जब एक पैर उठा न पाए तुम्हारे शरीर का वजन।
जब आपकी पत्नी के कंधे उठाने लगें आपका सारा बोझ,
जब हर एक काम के लिए हो जाएं आप किसी पर निर्भर,
तब महसूस होता है कि ये देह बहुत भारी हो गई है।


बोझिल मन से ठहाका लगा पाना बहुत मुश्किल होता है।  अगर टूटे हुए हों आपके दांत, तो भी हंसना कठिन होता है।

माना कि हंसना किसी समस्या का हल नहीं, लेकिन हंसने से बड़ा बल मिलता है। हंसना मेरे लिए तो संबल है। 

मेरा यकीन है कि कभी-कभी विपरीत हालात के लिए ब्रह्मास्त्र है तुम्हारी मुस्कान।

किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए,
मन शांत करने के लिए, बस तुम्हारा एक ठहाका काफी है।
बस इसीलिए मैं फिर हंसा, खुद पर हंसा, अपने दर्द पर हंसा, अपने हालात पर हंसा।
किस्मत को नहीं कोसा,
उसकी इन मेहनबानियों पर हंसा और बेतहाशा हंसा।
हंसता ही रहा इस बार भी हड्डियां टूट जाने के बाद।
हंसता ही रहा इस बार भी हड्डियां टूट जाने के बाद।

- 31अगस्त 2025

© दीपक गौतम
#आवाराखयाल #aawarakhayal

                   अबकी बार रक्षाबंधन कुछ यूं मना था। 

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